Tuesday, June 23, 2015

कल हज़ारों संदीप और जगेंद्र पैदा होंगे, कितनों की आवाज दबाओगे?

यहां हर शख्स हर पल हादसा होने से डरता है
खिलौना है ,जो मिट्टी का फना होने से डरता है...
मशहूर शायर राजेश रेड्डी  का ये शेर मुझे लगातार कुछ दिनों से डरा रहा है. अभी मैं कन्फ्यूज हूं कि क्या आप भी आजकल डरे हुए हैं या नहीं? लोकतंत्र में लगे रोग को कौन से योग से मिटाया जाए.. समझ नहीं आता. मैं लोकतंत्र को मजबूत करने की जिम्मेदारी नहीं उठाना चाहती हूं, मैं तो सिर्फ जीना चाहती हूं.. सच के साथ, इज्जत के साथ, परिजनों के साथ, अपनों के साथ, परायों के साथ.. यूं कहें तो सबके साथ.

यूपी के आतंक से अभी बाहर नहीं निकली कि मध्यप्रदेश की खबर ने झकझोर दिया. सुबह-सुबह ही सिहर उठी. सत्ता की हनक यूपी में दिखी तो एमपी में गुंडागर्दी का खौफ. लेकिन दोनों हादसों में समान बात ये थी कि दोनों जगह सच को दबाया गया. सच बोलने वाले को मौत के मुंह में ढकेल दिया गया. दोनों हादसों में सच को जिंदा जलाया गया. सच बिका नहीं तो जिंदा जला दिया गया. अब उस शहर में प्रेतों का बसेरा होगा. कोई आवाज नहीं निकलेगी. सब चुप.. बिल्कुल खामोश होंगे, ऐसा दबंगों को लगता है.
 
मध्य प्रदेश में खनन माफियाओं के ‘गुंडे’ एक पत्रकार का अपहरण कर उसे जिंदा जला दिये. जून महीने में यह दूसरी घटना है. इससे पहले यूपी के शाहजहां पुर में जगेंद्र सिंह को जलाकर मार दिया गया और जलाने वाले कोई और नहीं बल्कि पुलिस वाले थे जिन्होंने अखिलेश यादव के मंत्री के इशारे पर इस घटना को अंजाम दिया था..(मैं यहां कथित लगाना जरूरी नहीं समझती).

अखिलेश यादव के मंत्री राममूर्ति वर्मा को क्या पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया? क्या सरकार ने इस मुद्दे को इतनी गंभीरता से लिया कि आगे से कोई ऐसे अपराध को करने से पहले दस बार सोचे? जवाब है -नहीं. यूपी सरकार ने तो आनाकानी की.. उनका बस चलता तो केस भी दर्ज न होता वो तो भला हो मीडिया को जिसे जगेंद्र सिंह के दस दिन बाद ही सही लेकिन ये समझ आ गया कि इस मुद्दे को उठाना जरूरी है.

खुद जगेंद्र सिंह ने मरने से पहले अपना बयान दर्ज कराया था कि ‘मुझको गिरफ्तार करना था… तो कर लेते मगर पीटा क्यों? और आग क्यों लगा दी?’ इतना ही नहीं जगेंद्र सिंह ने मंत्री पर जलाने के आरोप लगाए. इसके बावजूद अखिलेश सरकार अब तक यह कह रही है कि बिना जांच के मंत्री को नहीं हटाया जाएगा.

तो जब यूपी में गुनाहगारों का पुलिस और प्रशासन कुछ नहीं बिगाड़ पा रही तो एमपी में कैसे बिगाड़ लेगी? शायद यही बात रही होगी संदीप कोठारी को जलाने वालों के मन में… तभी तो निडर होकर इसे अंजाम दे दिया.

अगर यूपी में हुई घटना पर कड़ी कार्रवाई होती मंत्री हों या पुलिस वाले उन्हें गिरफ्तार किया जाता. उन्हें कोर्ट तक घसीटा जाता तो शायद एक पल के लिए अपराध से पहले कोई सोचता भी. अभी तो यह घटना आम होती जा रही है. जिसके लिखने से कोई परेशानी है उसे ले जाओ जला दो. यूपी और एमपी में जांच की बात तो चल रही है लेकिन ऐसा ना हो कि जब तक जांच पूरी हो तब तक कई जागेंद्र और संदीप को अपनी जान की बलि चढ़ानी पड़े. एक के बाद होती ये घटनाए कई तरह के सवाल खड़े करती हैं. ये दोनों घटना कहीं न कहीं लोकतंत्र में आलोचना की घटती जगह का सबूत हैं.

आमतौर पर पत्रकारों पर हमले की खबरें आती रहती हैं लेकिन यह ध्यान देने की बात है कि जिन दो पत्रकारों की हत्या हुई है वे टीवी और अखबार के लिए नहीं बल्कि फेसबुक पर लिखते थे. ये दोनों फेसुबक पर ही खनन माफियाओं के खिलाफ अपनी मुहिम चला रहे थे. फेसबुक की ताकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यूपी और एमपी में खबर का खौफ इतना था कि ‘गुंडे’ इतनी खौफनाक हरकत करने से भी नहीं डरे ये…

संदीप और जगेंद्र की शहादत बेकार नहीं जाएगी. ये उन लाखों युवाओं के लिए एक प्रेरणा बनकर उभरेगी जो खुलकर अपनी बात लिख नहीं पाते थे. आज संदीप और जागेंद्र को तो मार दिया. कल हज़ारो संदीप और जागेंद्र होंगे. कितनों की आवाज दबा लोगे?

सोशल मीडिया से आ रही सूचना प्रवाह और अभिव्यक्ति की आजादी बचाने की जिम्मेदारी, कानून-व्यवस्था को दुरुस्त रखने का जिम्मा और राजनीतिक समीकरणों को सुरक्षित बनाए रखने की मजबूरी के बीच भारतीय सत्ता तंत्र लोकतंत्र की कसौटी पर बार-बार इम्तिहान के दौर से गुजर रहा है.

Sunday, June 07, 2015

ऐसा देश जहां पढ़ाई के लिए ना कोई गरीब ना कोई अमीर...इसे ही तो कहते हैं #रामराज्य

‪#‎रामराज्य‬ के दूसरे एपिसोड में ऐसे देश की बात जहां पढाई के लिए ना कोई अमीर है ना ही कोई गरीब.. जहां 99 फीसदी बच्चें सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं. कभी जंगलो के लिए मशहूर फिनलैंड में आज शिक्षा के क्षेत्र में रामराज्य हैं जहां 'Free & Equal Education To All' यानि सभी के लिये मुफ्त और एक जैसी शिक्षा व्यवस्था है. ना ही ड्रेस की फिक्र ना ही किताबों की और ना ही फीस की...इसे हो तो कहते हैं रामराज्य. सबसे अहम बात है कि यहां पर टीचर्स ट्रेनिंग मास्टर्स के बाद होती है जिसमें दाखिला लेना काफी मुश्किल होता है. यहां डॉक्टर और ऑफिसर से ज्यादा बच्चें टीचर बनना चाहते हैं. अगरआपने ये एपिसोड मिस कर दिया है तो यहां देख सकते हैं. इस लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं.

ABP न्यूज स्पेशल: फिनलैंड में है शिक्षा में 'रामराज्य'

Saturday, March 07, 2015

डॉक्यूमेंट्री विवाद: 'देश के करोड़ों मर्दों को पता तो चले कि वे रेपिस्ट की तरह सोचते हैं'




महज एक डॉक्यूमेंट्री पर बैन से क्या बदल जाएगा पुरुषप्रधान सोच?

निर्भया रेप कांड पर बनी डॉक्युमेंट्री 'इडियाज डॉटर' को लेकर संसद से सड़क तक हंगामा मचा हुआ है. भारत सरकार ने तो बैन लगा दिया लेकिन फिर भी लोगों ने इसे खूब देखा है. इसकी प्रसिद्धी का पूरा श्रेय भारत सरकार को ही जाता है. यह डॉक्यूमेंट्री महिला दिवस पर रिलीज होने वाली थी लेकिन आनन-फानन में बीबीसी ने ब्रिटेन में इसे पहले ही रिलीज कर दिया. इंटरनेट के जमाने में किसी फिल्म या वीडियो को बैन करने का कोई मतलब नहीं है. उधर रात तीन बजे ब्रिटने में इसका प्रसारण हुआ और इधर सुबह होते ही भारत में लोगों ने खूब देखा. इसे देखने के बाद मुझे लगा कि इस बेहद ही खूबसूरत डॉक्यूमेंट्री को सब को देखना चाहिए ताकि पुरुषप्रधान समाज की सोच से हर कोई वाकिफ हो सके.

कारण ये है कि आपको इस दिन महिला सशक्कितकरण और महिलाओं से जुड़े हर मुद्दे पर समारोहों में तो खूब भाषण सुनने को मिलेंगे लेकिन कितने लोग उसमें इस बात को लेकर गंभीर हैं, यह कह पाना मुश्किल है. कम से कम इस डॉक्यूमेंट्री को देखकर महिलाएं अपने समाज और देश की सच्चाई से रूबरू तो हो पाईं. इसे देखकर एक बार फिर वो दर्द जी उठा जिसे लेकर लोग सड़कों पर उतरे थे. उस अंतहिन दर्द को फिर से महसूस कर पाएंगे जिसे भूलकर हम अपनी-अपनी जिॆंदगी में आगे बढ़ चुके हैं.

इस समय इस हकीकत को दिखाना बहुत ही जरूरी था. अगर ऐसा नहीं होता तो एक बार फिर देश में निर्भया की गूंज न होती.

दुख इस बात का है कि जो सरकार यह नारा देती है ''नहीं होगा नारी पर वार'' उसने ही इस पर बैन लगा दिया. यहां बात रेपिस्ट की नहीं यहा बात निर्भया की है, उसके अस्तित्व की है, उसके सम्मान की थी. ये कैसा देश है मेरा जहां सरकार निर्भया फंड में 1000 करोड़ तो दे सकती है लेकिन उस पर बनी एक डॉक्यूमेंट्री को दिखाने पर पाबंदी लगा देती है. ये नारी के साथ कैसा न्याय है?

बैन भी इसलिए क्योंकि इसमें रेपिस्ट का इंटरव्यू है. लेकिन किसी भी फिल्म या डॉक्यूमेंट्री को देखे बिना ही बैन लगाने की वजह समझ नहीं आती. रेपिस्ट के जिस बयान को लेकर इतना हंगामा हुआ उसे जानना भी जरूरी था. उसकी बातें किसी भी मामले में समाज के बहुतेरे लोगों के बयान से अलग नहीं था. जैसा कि जावेद अख्तर ने कहा भी कि ''मर्दों को पता तो चले कि वे रेपिस्ट की तरह सोचते हैं.''

इस डॉक्यूमेंट्री में अगर कुछ विवादित है तो वह है दरिंदों के दोनों वकील का बयान. डॉक्यूमेंट्री में वकील एपी शर्मा बड़े ही गर्व से कहते हैं कि 'अगर मेरी बहन या बेटी शादी के पहले ऐसे काम करती हैं तो मैं पूरे परिवार के सामने उस पर पेट्रोल डालकर जला दूंगा.' दूसरे वकील एम एल शर्मा ने भी कहा है कि यदि लड़कियां बिना पर्याप्त सुरक्षा के बाहर जाती हैं, तो बलात्कार की ऐसी घटनाएं होनी तय हैं. रेपिस्ट मुकेश का भी बयान है कि जिसमें उसका कहना है कि ''शरीफ लड़कियां रात में नहीं घूमती हैं..लड़कों से ज्यादा लड़कियां रेप के लिए जिम्मेदार हैं.'' मुझे कहीं से भी नहीं लगता कि वकीलों और रेपिस्ट दरिंदे के बयान में कोई फर्क है.

अब सोचने वाली बात यही है कि जिस देश में वकील का काम एक संभ्रात पेशा माना जाता है. अब जिस देश में वकील ही यह सोचता हो वहां पर महिलाओं की स्थित का अंदाजा लगाया जा सकता है. यहां हम कदम से कदम मिलाकर चलने की बात करते हैं उसी जगह वकील एवं शिक्षित वर्ग इस तरह का शर्मनाक रूख रखता है. जिस सरकार ने एक रेपिस्ट की वजह से इस पर बैन लगा दिया बिना यह जानें कि इसमें क्या है क्या नहीं? उस सरकार के कानों तक क्या उस वकील की आवाज नहीं पहुंची. इस डॉक्यूमेंट्री के रिलीज होने के चार दिन बाद बार कौंसिल ऑफ इंडिया ने उन्हें नोटिस भेजा है.

गौर करने वाली एक बात यह भी है कि इसमें जेल में रेपिस्टों के मनोचिकित्सक बताते हैं, 'जेल में कुछ ऐसे अपराधी भी हैं जो बताते हैं कि उन्होंने 200 से ज्यादा रेप किए हैं और उन्हें करीब 12 बार ही सजा हुई हैं. उनका यह भी कहना है कि उन्हें सिर्फ 200 याद हैं हो सकता है कि इससे भी ज्यादा बार किए हों.'

इसे पढ़ने के बाद आपको यह बताने की जरूरत नहीं है कि किसी भी अपराधी के मन में कोई डर है. उनका सोचना तो सिर्फ यही है कि सरकार क्या कर लेगी. और सोचेंगे भी क्यों नहीं? इतने बड़े आंदोलन के बाद भी निर्भया के मां-बाप आज भी दोषी को सजा दिलाने के लिए दर-दर भटक रहे हैं. जिस केस के लिए पूरा देश सड़को पर आ गया जब उसका ही कुछ नहीं हुआ तो बाकियों का क्या होगा?

इसमें दरिंदो के परिवार, वकील, रेप कानून पर बनी जस्टिस जे एस वर्मा कमेटी लीला सेठ और गोपाल सुब्रमणयम का इंटरव्यू दिखाया गया है. उस पुलिस ऑफिसर ने अपना पक्ष रखा है जिसने पहली बार निर्भया और उसके दोस्त को नग्न अवस्था में देखा था, सफदरजंग की उस डॉक्टर को जगह दी गई है जिसने निर्भया का इलाज किया था. इस केस की पड़ताल कर रहे पुलिस ऑफिसर, और रेपिस्टों के परिवार को भी जगह दी गई है. इसमें निर्भया के अध्यापक ने कई अनजान पक्ष को भी बताया है. जब टीचर ये कहता है 'उसके सपने थे... बहुत सारे सपने थे बहुत बड़े सपने थे....' तो आपको रोंगेटे खड़े हो जाते हैं. निर्भय़ा के मां-बाप जब उसकी छोटी-छोटी बातें को शेयर करते हैं तो ऐसा लगता है कि कोई फिर से उस घाव को कुरेद रहा है.


इस डॉक्यूमेंट्री की डायरेक्टर लेसली उडविन ने महिलाओं के उस दर्द को बयां कर दिया है जो वो कब से अपने सीने में दबाएं बैठीं थी. ऐसी करने की हिमाकत आज तक कोई नहीं कर पाया. जहाँ पर इस हकीकत को देखकर एक बार फिर आपका दिल दहल जाएगा वहीं अगर इसके पीछे का सच आपको रूला देगा. विवादों के बीच यह डॉक्यूमेंट्री आपके मन मैं कई ऐसे सवाल छोड़ जाएगी जिसका जवाब आपको खुद ही ढ़ूढ़ना होगा.

Thursday, February 05, 2015

AIBKnockout का विरोध करने वाले पाखंडी, बताएं पॉर्न कटेंट का क्या करेंगे?


AIBKnockOut को लेकर सोशल मीडिया पर बवाल मचा हुआ है. कोई इसे भारतीय संस्कृति को बर्बाद करने वाला बता रहा है, तो किसी का कहना है कि भारतीय लोगों में एक मज़ाक को सहने तक क्षमता नहीं है. इन दिनों चल रही इस बहस के बीच AIB(आल इंडिया बकचोद) ने इस वीडियो को यह कहते हुए यूट्यूब से हटा लिया है कि लोग चाहें कुछ भी कहें लेकिन यह सिर्फ मजाक था और कुछ नहीं.



मुंबई की एक संस्था द्वारा AIB की टीम, बॉलीवुड अभिनेता रनवीर सिंह, करन जौहर और अर्जुन कपूर के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने के बाद महाराष्ट्र सरकार ने भी इसे गंभीरता से लिया है. सरकार ने जांच की बात कही और उसी बीच सेंसरबोर्ड के सदस्य अशोक पंडित के एक कमेंट से इस विवाद को और हवा मिल गई.

अशोक पंडित ने सीधा करन जौहर को निशाने पर लिया. ध्यान देने की बात ये है कि जिस वीडियो को अशोक पंडित 'अश्लील' बता रहे हैं उससे भी ज्यादा 'अश्लीलता' इनके ट्वीट्स में झलकती है. मुझे तो क्या ट्विटर पर एक अच्छे खासे वर्ग को इनका ट्वीट पसंद नहीं आया. तो क्या अब हम अशोक पंडित के ट्विटर अकाउंट को भी बैन करने की मांग करने लगेंगे?


साधारण सी बात है कि अगर मुझे उनकी सोच, उनकी भाषा समझ नहीं आई तो उन्हें फॉलो नहीं करेंगे या उनके ट्वीट्स नहीं पढ़ेंगे. बस यही बात अगर आप AIBKnockOut के मामले में भी लागू कर दें तो इतने हंगामे की जरूरत ही नहीं पड़ेगी.


वीडियो हटने के बाद भी सोशल मीडिया पर लगातार बहस चल रही है. पूरा बॉलीवुड AIB के साथ है. आलिया भट्ट से लेकर दूसरे एक्टर्स ने भी AIB के समर्थन में अपनी राय बेबाकी से रखी है.


जिस संस्था ने इस वीडियो के खिलाफ मुंबई में शिकायत दर्ज कराई है उसका कहना है कि इसमें काफी गाली गलौज है. यह न सिर्फ भारतीय संस्कृति और महिलाओं की छवि को बर्बाद कर रहा है बल्कि आज के युवाओं को गुमराह भी कर रहा है. अब ऐसे में सवाल ये है कि क्या इंटरनेट पर गुमराह करने के लिए सिर्फ रोस्ट वीडियो की उपलब्धता है? वैसे तो AIB का यह वीडियो सिर्फ एडल्ट्स के लिए था जो कि आप लॉगिन करने के बाद ही देख सकते थे.


आज के दौर में अगर हम इंटरनेट की बात करें तो यहां पर हज़ारों और लाखों की संख्या में पॉर्न साइट्स उपलब्ध हैं जिन्हें आसानी से सर्च करके देखा जा सकता है. आप युवाओं के सर्च करने और इंटरनेट यूज करने पर बैन नहीं लगा सकते हैं. आपने एक वीडियो को तो हटवा दिया लेकिन उन हजारों और लाखों की संख्या में इटंरनेट पर उपलब्ध पॉर्न कंटेंट का क्या करेंगे? जिन्हें अक्सर ही रेप और छेड़खानी जैसी घटनाओं के लिए जिम्मेदार माना जाता है. क्या आपने उन वेबसाइट्स को बैन कराने के लिए कुछ किया है? कोई शिकायत कोई FIR दर्ज कराई है. नहीं ना, तो फिर इस पर क्यों?


क्या भारत में बैन करने और बहस करने के लिए सिर्फ यही आखिरी चीज बची है? क्या इस वीडियो को हटाने से आपकी भारतीय संस्कृति बर्बाद होने से बच गई? मेरा सवाल ये है कि क्या शोषण करो, छेड़खानी करो और बलात्कार करो भारतीय संस्कृति है. नहीं ना, फिर भी ऐसी घटनाएं रोज सुनने और देखने को मिलती हैं. अगर आपको रोकना ही है तो रेप होने से रोकिए, हत्याएं रोकिए, भूखमरी रोकिए, किसानों को आत्महत्या करने से रोकिए न की अपना कीमती समय इस बेवजह बहस पर खराब करिए.

AIBKnockOut एक वीडियो है जिसमें हंसी-मजाक उसी लेवल का है जो आप भी करते हैं और उतनी ही अश्लील बातें और मैसेज आज के युवाओं के मैसेज बॉक्स में होती हैं. वीडियोज भी आप चुपचाप देख ही लेते हैं तो फिर इस वीडियो पर इतना पाखंड क्यों? क्या आप एक मज़ाक को मज़ाक की तरह नहीं ले सकते हैं? क्या आप हंसना भूल गए हैं? क्या आपने कभी किसी से इस लेवल का मज़ाक नहीं किया? या फिर किसी की खिंचाई नहीं की? अगर आपका जवाब हां है तो पाखंड बंद कीजिए और अगर ना है तो आप वाकई बीमार हैं आपको चेकअप की जरूरत है.

भारत के लिए यह शो अपने तरह का एक नया एक्सपेरिमेंट है. जिसे लोगों ने सराहा भी है और आलोचना भी की है. आलोचना तक तो ठीक है क्योंकि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं. यह दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि जहां भारत दुनिया के बाकी देशों से कदम से कदम मिलाकर चलने की बात कर रहा है उसी देश के लोग मजाक को भी बर्दाश्त करने की मानसिकता नहीं रखते हैं. लोग मज़ाक पर भी अभियान चलाने लगते हैं और उसे बैन करने की मांग करने लगते हैं.


गौरतलब है कॉमेडी रोस्ट की शुरुआत अमेरिका में सबसे पहले हुई थी. पहली ऑफिशियल रोस्ट न्यूयॉर्क के फ्रायर्स क्लब के स्टैंड अप कॉमेडियन Maurice Chevalier के साथ हुई थी. लेकिन भारत के उलट अमेरिका में लोगों ने इस शो को हाथोंहाथ ले लिया था और खूब सराहना की थी. यहां तक की व्हाइट हाउस में होने वाले वार्षिक कॉरेस्पोंडेंट भी कई बार प्रेसीडेंट को ‘रोस्ट’ करते हैं. 2006 में अमेरिका के राष्ट्रपति जॉर्ज ड्ब्ल्यू बुश को स्टैंडअप कॉमेडियन स्टेफन कोलबर्ट ने रोस्ट किया था. बुश ने उस मज़ाक को बहुत ही अच्छे तरीके से लिया था ना कि सब पर हंगामा मचाया था.

जिस कॉमेडी रोस्ट पर लोग इतना बवाल मचा रहे हैं वैसा ही शो भारत के लोग सालों से देखते आ रहे हैं. सिर्फ इसका प्रॉडक्शन पहली किसी ने किया है? भारत के लोग इसे कई सालों से टेलिविजन पर देखते आ रहे हैं. यूएस का चैनल कॉमेडी सेंट्रल ने 1998 में 'कॉमेडी चैनल रोस्ट' नाम की एक सीरिज की शुरूआत की थी. अब इस चैनल पर प्रसारित होने वाला यह 'कॉमेडी रोस्ट' भारत सहित कई देशों के लोग देखते हैं. यह चैनल भारत में हर तरह के केबल नेटवर्क पर उपलब्ध है. अगर इससे युवाओं पर बुरा असर पड़ता है तो इस पर बैन की मांग क्यों नहीं की गई है? इस पर विवाद क्यों नहीं हुआ?


अब इसी शो की तर्ज पर AIBKnockOut ने इसे भारत में लॉन्च किया है. तीन घंटे तक शूट होने वाले इस शो को एडिट करके सिर्फ आधे घंटा यू-ट्यूब पर डाला गया था. जिस पर इतना हंगामा हुआ अगर पूरा डाल दिया जाता तो पता नहीं क्या हो जाता. शो को लाइव देखने के लिए चार हजार लोग पहुंचे थे. वे लोग पूरे चार हजार रुपये देकर इस कथित अश्लीलता को देखने और गाली गलौज सुनने गए थे. आखिर जब उन्हें कोई दिक्कत नहीं है तो आपको क्यों हैं ? किसी ने आपको यूट्यूब पर जाकर उस वीडियो को देखने को तो नहीं कहा ? वीडियो हटाए जाने से पहले करीब 70 लाख लोगों ने खुद ही जाकर AIBKnockOut के इस कथित अश्लील वीडियो को देखा.


आप किसी चीज से सहमत या असहमत हो सकते हैं. अपने विचार रख सकते हैं. लेकिन दूसरों को क्या करना है और क्या नहीं करना हैं ? क्या देखना है और क्या नहीं देखना है ? क्या अश्लील है और क्या नहीं हैं ? आखिर ये तय करने वाले आप होते कौन हैं ?


इस पूरे प्रकरण को देख कर लगता है कि देश में संस्कृति के ठेकेदारों ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को तिलांजलि दे दी है. हर कोई संस्कृति को अपनी सहूलियत के हिसाब से परिभाषित कर रहा है और अपने विचारों को दूसरे पर थोपने की कोशिश कर रहा है. इन संस्कृति के ठेकेदारों को वॉल्टेयर के विश्व प्रसिद्ध कथन को याद रखने की जरूरत है जिसमें उन्होंने कहा था, ''हो सकता है मैं आपके विचारों से सहमत न हो पाऊँ फिर भी विचार प्रकट करने के आपके अधिकारों की रक्षा करने के लिए मैं अपनी जान भी दे सकता हूं"