Saturday, August 18, 2012

रिश्तों की कीमत हमेशा महिलाओं को ही क्यों चुकानी पड़ती है?


अपने देश में राजनेताओं के साथ महिलाओं के संबंध कोई नई बात नहीं है। बात नसीब-नसीब की है कि किसी-किसी के संबंध पर्दे के पीछे होते और खत्म हो जाते है और किसी का छीछालेदर होकर एनडी तिवारी की तरह बाहर आ जाता है।

इसी क्रम में एक और नाम जुडा- गोपाल कांडा, एक ऐसा नाम जिसने कुछ ही समय में एक जूते की दुकान से लेकर एयरलाइंस कंपनी के मालिक बनने और मंत्री तक का सफर तय कर लिया। कांडा के ही एयरलाइंस में एयरहोस्टेस रह चुकीं गीतिका शर्मा ने 4 अगस्त की देर रात अशोक विहार फेज-3 स्थित अपने फ्लैट में पंखे से लटककर आत्महत्या कर ली। 2 पेज के सुसाइड नोट में गीतिका ने गोपाल कांडा और उसी कंपनी की मैनेजर अरूणा चड्ढा पर मानसिक प्रताडना का आरोप लगाया है। यह पहली बार नहीं है जब कांडा पर आरोपी बने हैं। साल 2009 में अपने चुनावी शपथ पत्र में उन्होंने खुद बताया कि उनके खिलाफ क्राइम के 10 मामले चल रहे हैं। सुसाइड नोट के सार्वजनिक होने के कुछ ही घंटों बाद कांडा ने इस्तीफा दे दिया और कहा कि यह उनके खिलाफ कोई राजनैतिक षड्यंत्र का हिस्सा है।

इसके बाद शुरू हुआ दिल्ली पुलिस की छापेमारी। दिल्ली पुलिस की जिसने लगातार 12 दिनों तक कांडा के ठिकानों पर छापेमारी की लेकिन कुछ भी हाथ नहीं लगा। पुलिस पूरी तरह बेबस और लाचार दिख रही थी। पुलिस की परेशानी शायद कांडा से देखी नहीं गई और उन्होंने 12 दिनों तक फरार रहने के बाद आज बड़े ही नाटकीय तरीके से सरेंडर कर दिया।

अब इस सवाल का जवाब दिल्ली पुलिस ही दे सकती है कि वो कांड़ा को गिरफ्तार करना चाहती थी या फिर उसे समय दे रही थी ताकि कांडा बचने का सटीक तरीका ढ़ूढ़ ले। यह बात वाजिब है कि 12 दिन कम नहीं होते गवाहों को गुमराह करने के लिए या फिर उन्हें खरीदने के लिए। जिस तरह से कांडा ने सरेंडर किया है उससे यह तो साफ हो गया है कि यह पूरा माजरा स्क्रिप्टेड है।

गौऱ करने योग्य बात है कि कांडा ने गीतिका शर्मा को 17 साल की उम्र में 2006 में ही एमडीएलआर एयरलाइंस में 16 हजार रुपए वेतन पर फ्लाइट अटेंडेंट की नौकरी दी।  जिस एयरलाइंस की शुरूआत ही 2007 में की हुई उसमें गीतिका को नौकरी एक साल पहले ही मिल गई थी। जब एक साल के अंदर ही गीतिका ने नौकरी छोडऩी चाही तो उसका वेतन बढ़ाकर 33000 कर दिया गया।

2010 में गीतिका के जॉब छोड़ दिया तो कुछ दिन बाद गोपाल कांडा ने उसे दोबारा अपनी कंपनी में नौकरी दे दी, वह भी प्रमोशन देते हुए कंपनी का निदेशक बनाकर। 66000 रुपए वेतन तय हुआ और कंपनी की ओर से बीएमडब्ल्यू कार। इतना ही नहीं, गीतिका के एग्रीमेंट में यह भी था कि रोज शाम को वह गोपाल कांडा को रिपोर्ट किये बिना घर नहीं जा सकती।

आखिर, गोपाल कांडा ने गीतिका पर इतनी मेहरबानी क्यों की? एक नाबालिग लड़की को नौकरी कैसे दे दी गई? आखिर ऐसा क्या कर दिया गीतिका ने जो पहली बार में ही उसका इनक्रीमेंट सीधे सौ फीसदी से ज्यादा कर दिया गया?
क्या गीतिका का अनुभव इतना गजब का था कि उसे प्रेसिडेंट का ओहदा दे दिया गया? क्या गीतिका के परिवार जनों को इसकी कोई खबर नहीं थी? मेरे मन में ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब शायद किसी के पास नहीं है।

आज गीतिका का परिवार जस्टिस के लिए गुहार लगा रहा है लेकिन क्या इससे पहले गीतिका की परेशानियां उन्हें नजर नहीं आई।  इतने कम समय में इतना सब कुछ! आखिर गीतिका के परिवार को यह नागवार क्यों नहीं लगा कि गोपाल कांडा उस पर इतने मेहरबान क्यों है? या फिर उसकी इतनी जल्दी-जल्दी तरक्की क्यों और कैसे हो रही है? आखिर उन्हें यह तो पता ही था कि उनकी बेटी असाधारण प्ततिभा की धनी तो है नहीं। उन्होंने तरक्खी से खुश होने के बजाय यह पता लगाने की कोशिश क्यों नहीं कि सबकुछ इतनी जल्दी क्यों हो रहा है या फिर वो जानबूझ कर अंजान बन रहे थे।

खैर, अब तक महिलाओं के आत्महत्या या हत्या के मामलों पर नजर डाला जाए तो उनमें से ज्यादातर कम समय में शोहरत और धन बटोरने की के लालच की शिकार होती हैं। चाहें हम बात मधुमिता, लैला खान की करें या फिजा या फिर भंवरी देवी की। सब की मौत का कारण बना दौलत और शोहरत।

कहा जाता है कि महात्वाकांक्षी होना अच्छी बात है। लेकिन ऐसी महात्वाकांक्षा का क्या फायदा जिसकी बदले में अपनी जान गवांनी पड़े। लेकिन आजकल तो कर्मवादी बनने की बजाय शार्ट कट का चलन है। तो उसका कुछ ना कुछ खामियाजा तो भुगतना ही पड़ेगा।