Monday, January 27, 2014

'ड्रग्स और शराब चलेगा क्या कर लोगी?'

अब छेड़खानी और रेप की खबरें सुननी आम बात सी हो गई है. कल रात की ही बात है जब एक लड़की के दोस्तों ने ही रेप करके उन्हें कार से बाहर फेंक दिया. ऐसी तो बहुत सारी खबरें सुनने को मिलती हैं लेकिन कल गणतंत्र दिवस था. सुरक्षा चाकचौबंद थी. पुलिस ने तो कुछ ऐसा ही दावा किया था लेकिन फिर ऐसी घटना कैसे हो गई?  कहीं ना कहीं यह पुलिस की नाकामी का ही नतीजा है.


कभी कभी अनायास ही मन में सवाल आते हैं कि क्या अपराधियों को कानून का डर क्यों नहीं? क्या उन्हें इस बात का खौफ नहीं कि एक अपराध से उनकी पुरी जिंदगी बर्बाद हो सकती है? लेकिन जिस तरह से इस क्राइम का ग्राफ ऊपर जा रहा है उससे तो यही लगता है कि लोगों में कानून और पुलिस प्रशासन का डर है ही नहीं.


डर नहीं होने का कारण भी पुलिस ही है. उनकी हरकतें, अपने काम के प्रति उनकी लापरवाही, किसी भी शिकायत को गंभीरता से ना लेना और फिर सुन भी ली तो एक्शन लेने की जरूरत तो उन्हें लगती नहीं. अब जब पुलिस ही ऐसा करेगी तो लोग डरेंगे भी क्यों?

खुद के साथ भी बड़ा ही कड़वा अनुभव रहा है. कल रात की ही बात है. कुछ ब्लैक शराब बेचने वालों से हमारी झड़प हो गई. बस वे लोग 26 जनवरी को ड्राई डें होने का फायदा उठा रहे थे. सुबह से लेकर शाम हो गई यह देखते देखते की इनका ड्रामा कब खत्म होगा. देखना इसलिए पड़ रहा था कि यह सब हमारे फ्लैट के सामने ही हो रहा था. पिछले 2 साल से देख रहे हैं कि ऐसा होता है. फर्क इतना है कि कभी हम बाहर निकलकर 

बोल देते हैं कि यहां से कहीं और जाकर यह सब काम करो. कुछ लोग है जो कि चुपचाप चले जाते हैं कुछ लोग है जो हमें यह बताने लगते हैं कि हम यहां के नहीं है तो हमें इन सब पचड़े में नहीं पड़ना चाहिए और ये सब इग्नोर करना चाहिए. कुछ हद तक हम लोग इग्नोर करते भी है. क्योंकि जब दिल्ली पुलिस काम ये सब संभाल पा रही तो हम क्या करेंगे. कंप्लने भी कई बार कर चुके हैं लेकिन पुलिस ही है तो क्या काम करेगी सभी को पता है.


कल शाम के 7-8 बज रहे थे. हमने गेट खोला तो सामने यह सब चल रहा था. जब उनसे यह कहा कि प्लीज आप लोग यहां से कहीं और चले जाइए तो उनका कहना था कि रेंट पे रहते हो तो मत बोलो, तुम्हारा घर होता तो कोई और बात होती. हमने कहा- अच्छा नहीं लगता...यहां लड़कियां रहती हैं आप लोग यहां से कहीं और जाओ नहीं तो हम लोग पुलिस को कंप्लेन करेंगे. उसका कहना था कि पुलिस क्या कर लेगी? सबको ही पता है कुछ नहीं करेगी लेकिन फिर हमने कहां बहुत कुछ कर लेगी चुपचाप जाओ यहां से. उनका कहना था- नहीं जा रहे क्या कर लोगे? 


हमने फिर पुलिस को फोन किया.. सोचा दिल्ली पुलिस है कम से कम आज के दिन तो लापरवाही नहीं बरतेगी. समय से पहुंच ही जाएगी. वे लोग हमें डराने की कोशिश में हमारे गेट तक आ गए. बस अब तो बर्दाश्त के बाहर था.. ना चाहते हुए भी घर से बाहर आकर उनसे लड़ने में हम भी लग गए कि तब तक तो पुलिस पहुंच ही जाएगी. लेकिन शायद हम गलत थे. यहां पुलिस क्राइम होने के बाद ही पहुंचती है तो इतिहास रहा है फिर हमारे साथ ऐसा क्यों नहीं होता?


वे लोग बात लड़ाई से बढ़ाते-बढ़ाते हाथापाईं तक ले आए...शायद उनकी  मंशा कुछ और ही रही होगी. उन्हें लगा कि लड़कियां है डर जाएंगी.. डर तो जरूर जाती ..लेकिन शायद आदत नहीं रही डरने की,.. किसी से भी.. आश्चर्य की बात ये थी कि जो आस पास के लोग थे वे तमाशबीन की तरह देख रहे थे और शायद मजे भी ले रहे होंगे.


मैं और मेरी रूमी संगीता... जब हम आगे बढ़ने लगे तब वे लोग डरे और भगे वहां से यह कहते हुए कि आगे गली में आ जाओ फिर तुम्हें बताते हैं..अब कोई ऐसी बात बोलता है तो सच कहूं तो बर्दाश्त नहीं होता. बचपन से कभी आदत नहीं रही किसी की भी ऐसी बातें सुनने की. यहां तक कि घर में पैरंट्स ने तो हमेशा से ही सिखाया है कि जब अपनी गलती ना हो और कोई तुम्हें बेवजब परेशान करने की कोशिश करें तो उनसे लड़ो..जरूरत पड़े तो हाथ-लात घूसे  देके आओ...लेकिन डरना किसी से नहीं और कभी भी नहीं. खैर,


...उस गुस्से में तो यही लग रहा था कि अब जाकर भी देख लेते हैं गलियों में कि वे लोग क्या करते है.. गए भी लेकिन वे लोग भाग पराए. कुछ ही सकेंड में सब अपने अपने घऱों में छिप गए. पास के ही थे बस मौके का फायदा उठाकर ऐसा कर रहे थे क्योंकि उन्हें इस बात की पहले से खबर थी कि हमारे लैंडलार्ड इस समय कुछ दिनों के लिए दिल्ली में नहीं है.


...लगभग 15 मिनट बाद पेट्रोलिंग वाले का फोन आया कि हां जी क्या बात है...और आप लोगों का एड्रेस हमें नहीं मिल रहा है. बहुत आश्चर्य हुआ यह सुनकर क्योंकि पुलिस स्टेशन हमारे फ्लैट से बस आधा किलोमीटर की दूरी पर है... और उन्हें अपने एरिया में कौन सा एड्रेस कहां पर है यह भी नहीं पता..चलो जी कोई बात नहीं... लोकेशन बताया..फिर आए..परेशानी सुनी..फिर कहा- मामला शांत हो गया, अब हमारे एसआई साहब आएंगे उन्हें लिखित एप्लिकेशन दे दीजिएगा आप लोग.

वैसे ये कंप्लेन हम पहली बार नहीं कर रहे थे..इससे पहले भी हम यह लिखित कंप्लने कर चुके थे कि यहां पर शराब, ड्रग्स जैसी चीजें खुलेआम बेची जाती है. हमें बेचने से क्यों परेशानी होगी जब पुलिस ही कुछ नहीं करती..परेशानी बस इस बात से है कि यह सब हमारे रेसिडेंस के आस पास ही होता है.


हमने कहा जी ठीक है..देखते है कंप्लने के लिए पुलिस कितनी देर में आती है..लगभग आधे घंटे बाद आ गई पुलिस. झगडे की वजह पूछी, किसने किया..शुक्र है कि हमें उस इंसान के बारे में पता चल गया था जिसने इस झगड़े की शुरूआत की थी. हमने घर बताया पुलिस वहां पहुंच तो  गई लेकिन वैसा ही हुआ जैसा बहुत पहले से होता आया है. वह घर से गायब था..उसके घर की औरते पुलिसवालों से ही उलझ गईं. बजाय हमारी प्राब्लम औऱ उस आदमी को ढ़ुढ़ने के पुलिस उन्हें चुप कराने में लग गई.


सब के बाद पुलिस इस नतीजे पर पहुंची कि हमें कई सारे नंबर दे दिए कि जब भी ऐसा कुछ लगे तो हम उन्हें इन्फार्म कर दें. फिर वे आएंगे और ऐसी हरकतें करने वाले लोगों को अरेस्ट करेंगे. वाह रे पुलिस...


बहुत ही आश्चर्य हुआ कि अगर हमारे साथ कुछ और अनहोनी हो जाती तो पुलिस को बार बार फोन करके घर का रास्ता कौन बताता... वे लोग हमसे मारपीट करके अगर भाग जाते तो पुलिस उन्हें कैसे गिरफ्तार कर पाती. वैसे ये मारपीट से कम नहीं थी.. अकेली लड़कियों को देखकर उनके घर में घुसने की कोशिश करना ... उनसे लड़ना और फिर हाथापाई करना यह किसी अपराध से कम नहीं है. ऐसे में इतना तो हमें भी पता है कि पुलिस को क्या करना चाहिए. खासकर तब जब उनके  सामने बीसों गवाह मौजूद हैं. लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ.


यह तो पहले से पता था कि दिल्ली पुलिस कितनी अलर्ट रहती है लड़कियों की सुरक्षा को लेकर...लेकिन कल इस बात की एक मिसाल भी दे दी इन लोगों ने. एक पल के लिए ऐसा लगा कि अगर यहां रहना है तो दिल्ली में जिसे भी रहना है वह खुद को इस काबिल बना ले कि सारे मुसीबतों से खुद ही निबट ले. पुलिस तो बस सरकार के पैसे लेती रहेगी और यह दिखावा करती रहेगी कि हां जी हम काम तो कर ही रहे हैं.. भले ही किसी का रेप हो रहा हो और उन्हें कोई उन्हें हेल्प के लिए फोन करे तो उन्हें अंग्रेजी ही समझ ना आएकि लड़की क्या बोल रही है.. भले ही कहीं 4-6 लोग लड़कियों से जबरदस्ती लड़ने की कोशिश कर रहे हों ये पुलिस के लिए कोई बड़ी बात नहीं..


लेकिन इन सब हालातों से गुजरने के बाद एक बहुत बड़ा सवाल है...कल मौका देखकर हमारे साथ लड़ने की कोशिश की.. दूसरे दिन कुछ औऱ प्लान करेंगे... अगर हमारे साथ कुछ अनहोनी हो गई तो उसका जिम्मेदार कौन होगा? किसी ने हमारे साथ कुछ बुरा कर दिया तो उसका जिम्मेदार कौन होगा? ये कुछ ऐसे सवाल है जो कल से ही जेहन में उभर रहे हैं लेकिन कोई जवाब नहीं दिख रहा....