Sunday, January 05, 2014

अब बाहर से ज्यादा घर में असुरक्षित हैं महिलाएं...

किसी ने सच ही कहा है कि आज भी आदम की बेटी हंटरों की जद में हैं, हर गिलहरी के बदन पर धारियां जरूर होंगी. 16 दिसंबर 2012 को हुए गैंगरेप के बाद देश में एक क्रांति की शुरूआत हुई. इस घटना ने लोगों की रूह को कंपा दिया. निर्भया को इंसाफ दिलाने के लिए लोग सड़कों पर उतर आए.


जन आंदोलन हुए. लोगों ने सरकार के खिलाफ खूब नारे लगाए. आलोचनाएं कीं.  खूब मोमबत्तियां भी जलाईं. भाषण दिए.  कुछ तो उस आंदोलन की हवा में बह गए . कुछ ने देखादेखी कर दी. लेकिन इतना सब करने का क्या फायदा मिला?  लोगों ने इंडिया गेट से लेकर जंतर मंतर तक खूब धरने दिए. एक क्रांति आई.. लेकिन वह क्रांति नहीं आई जिसकी जरूरत थी. जरूरत थी विचारों के क्रांति की..सोच के क्रांति की.. खुद को बदलने के क्रांति की. दोषारोपण करने से क्या होता है. लोगों ने तो सरकार को दोषी ठहराया कि कड़े कानून नहीं हैं इसलिए ऐसी घटनाएं हो रही हैं. लेकिन यह हकीकत है कि कानून से डर पैदाकर अपराध को नहीं रोका जा सकता है. अपराध कम तभी होगा जब लोग खुद में बदलाव लाएंगे.

महिलाओं की सुरक्षा को लेकर कानून भी आए लेकिन क्या सिर्फ कानून के डर से इस क्राइम पर लगाम लगाया जा सकता है? आकड़ों पर नजर डालें तो शायद कहेंगे नहीं. आज भी रेप और छेड़छाड़ के मामलों का ग्राफ नीचे नहीं ऊपर की तरफ तेजी से बढ़ता जा रहा है.  2013 में दिल्ली में रेप के कुल 1559 मामले दर्ज हुए है जो कि 2012 की तुलना में दोगुना से भी ज्यादा है. लेकिन सबसे बड़ी चौकाने वाली बात यह है कि इसमें से 1347 रेप तो घर के अंदर ही हुए हैं जिसे किसी रिश्तेदार या फिर किसी जानने वाले ने किया है.  छेड़छाड़ के मामले 3347 दर्ज हुए जिनमें से 1445 तो घरों के अंदर के ही मामले हैं. ये मामले 2012 की तुलना में पांच गुना ज्यादा है.
ये आकड़े दिल्ली के ही है. जहां जन-आदोलन के लिए इतनी भीड़ इकट्टी तो हो गई.  लेकिन दावे के साथ कहा जा सकता है कि वो इकट्ठी भीड़ सिर्फ दिखाने के लिए ही रही होगी. अगर वे सभी लोग खुद ही यह सोच लेते कि वे महिलाओं का सम्मान करेंगे. उनकी इज्जत करेंगे.  छेड़छाड़ नहीं करेंगे. रेप नहीं करेंगे तो यहां कुछ और ही आंकड़े होते. अगर उस भीड़ ने थोड़ी भी सीख ली होती तो आज ये आकड़े देखने को नहीं मिलते.

पहले मेरे दिमाग में यह बात थी कि शिक्षा का स्तर ऊंचा हो तो इस अपराध में कमी हो सकती है. लोग पढ़े लिखे होंगे तो उनकी सोच इन सब हरकतों से परे होगी लेकिन तरूण तेजपाल और जस्टिस गांगुली ने इसे भी गलत करार दे दिया. इन लोगों ने यह साबित कर दिया कि जब इंसान यह ठान ले कि उसे अपराध करना है तो शिक्षा का कोई मतलब नहीं रह जाता. खैर...,

जो तथ्य सामने आए हैं वे तो और भी शर्मिंदा करने वाले हैं. लोग अपनी बहू-बेटियों के लिए चिंतित रहते हैं. कई बार कहते हुए भी सुना जाता है कि हमारे घर की बेटिंया बाहर सुरक्षित नहीं है. लेकिन ये आकड़े तो कुछ और ही कह रहे हैं. यहां तो महिलाएं घर में ही सुरक्षित नहीं है. यह सच्चाई भी है. ऑफिस से बचे तो रास्ते...रास्ते से बचे तो गली-मोहल्ले... वहां से भी बच निकले तो घर... अब घर से ज्यादा सुरक्षित जगह कहां होगी जहां पनाह ली जा सके...लेकिन जब घर ही असुरक्षित हो तो कहां जाएंगे?

कहीं ना कहीं घरों के अंदर हो रहे इस रेप की वजह का कारण साफ है. महिलाएं इस बात को लेकर डरती हैं कि अगर मामला दर्ज कराया तो लोग क्या कहेंगे. पहले तो उन्हें डराया धमकाया जाता है. वे खुलकर बोल नहीं पाती. शिकायत नहीं दर्ज करा पाती क्योंकि उन्हें डर रहता है कि पता चलने के बाद समाज उन्हें किस नजर से देखेगा? उनका भविष्य क्या होगा? लेकिन अब समय यह सब सोचने का नहीं है. अपने लिए लड़ने का है. महिलाओं के जागने का है. खुद को इन सब पचड़े से निकालकर खुद के बलबूते अपनी जगह बनाने का है. डरने का नहीं डराने का है. खुलकर बोलने का है. अपने खिलाफ हो रहे अन्याय के विरोध में आवाज उठाने का है. अगर आप खुद के लिए नहीं लड़ेंगे तो कोई और आपकी मदद नहीं करेगा. इसलिए उठो..जागो..आवाज बुलंद करो और खुद के लिए लड़ो.