Tuesday, January 04, 2011

जेपीसी V/S पीएसी




पीएसी है, एक जेपीसी है। पर अभी कोई नहीं पूछ रहा कि बोलो क्या चाहिए? विपक्ष को दोनों चाहिए और सरकोर कह रही है कि एक है तो दूसरी क्यों चाहिए? विपक्ष कह रहा है-ठीक है पीएसी है। पर जेपीसी भी चाहिए। सरकोर कह रही है-अरे जब पीएसी है ही, तो फिर जेपीसी क्यों चाहिए? विपक्ष कह रहा है-जेपीसी तो चाहिए ही। वो नहीं मिली तो संसद नहीं चलेगी। सरकोर कह रही है-संसद चलने दो। विपक्ष कह रहा है-तो जेपीसी दे दो। सरकोर कह रही है-वो तो नहीं मिलेगी। विपक्ष कह रहा है-तो फिर संसद भी नहीं चलेगी। चलिए जानते है क्या है जेपीसी और पीएसी?





पीएसी के अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी
क्या है पीएसी- संसद की पब्लिक अकोउंट्स कमेटी यानि खर्चे को हिसाब-किताब देखने वाली कमेटी जिसका अध्यक्ष विपक्ष को नेता होता है। वर्तमान में पीएसी के अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी है। पहले जसवंत सिंह जी इसके अध्यक्ष बने, तो वह अपनी किताब लेकर एक तरफ खड़े हो गए और पार्टी दूसरी तरफ। अंतत पार्टी से निकोले गए। अब मुरली मनोहर जोशी इसके अध्यक्ष हैं, तो वह अपनी पीएसी लिए एक तरफ खड़े हैं और पार्टी दूसरी तरफ खड़ी जेपीसी मांग रही है।




क्या है जेपीसी- संयुक्त संसदीय कमेटी (ज्वाइंट पार्लियामेन्टृी कमिटी )। यह कभी-कभी बनती है और तभी बनती है जब घोटाले होते हैं।अब तक चार बार संसदीय कमेटी का गठन किया जा चुका है । 1987 में बोफोर्स तोप सौदे में दलाली के आरोपों की जांच के लिए पहली बार जेपीसी गठित की गई थी। इसके बाद हर्षद मेहता घोटाले की जांच के लिए 1992 में, केतन पारेख के घोटाले की जांच के लिए 2001 में और सॉफ्ट ड्रिक में कीटनाशको की मौजूदगी संबंधी रिपोर्ट की जांच के लिए संसद ने 2003 में जेपीसी गठित की थी। लेकिन एक बार भी सफलता नही मिली ।शेयर घोटालों को यह श्रेय जाता है कि तीन में से दो जेपीसी उनके हिस्से में हैं। खैर,इन तीनों को क्या नतीजा निकला? कोई जानता है क्या? फिर भी विपक्ष अक्सर जेपीसी मांगता रहता है और सरकोर देती नहीं। पर अब वह फिर स्पैक्ट्रम घोटाले के लिए जेपीसी मांग रहा है। पर सरकोर दे नहीं रही और संसद चल नहीं रही। मगर अब जोशीजी कह रहे हैं कि पीएसी इस घोटाले की जांच करने में समक्ष है।

पीएसी यह जांच कर सकती है,तो जेपीसी मांगकर बीजेपी वाले या तो उनकी हैसियत घटा रहे हैं या उनकी हैसियत को स्वीकोर ही नहीं कर रहे हैं।

उन्हें यह भी लगा होगा कि उन्हें दरकिनार किया जा रहा है,जो कि शायद उन्हें हमेशा ही लगता रहा होगा। या फिर यह भी हो सकता है कि उन्हें यह लगा हो कि यह पार्टी में खुद ही अपनी हैसियत दिखाने को जमाना है,बिना दिखाए तो संघ भी नहीं देखता। और यह तो बिल्कुल हो ही सकता है कि जब बीजेपी और एनडीए की ओर से अगले प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवारों के नाम पेश हो रहे हों तो वह दिखा दें कि वह अभी मौजूद हैं और उनकी भी एक हैसियत है।



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