Wednesday, December 01, 2010

भगवान भरोसे चला दिल्ली विधानसभा का शीतकालीन सत्र

जी हाँ ! दिल्ली विधानसभा का शीतकालीन सत्र भगवान भरोसे ही चला| विधानसभा में आखिरी दिन भी विपक्ष हॉउस कमिटी के लिए भजन गाता रहा लेकिन फिर भी उनका सुनने वाला कोई नहीं था | यह विडम्बना ही कह सकते है कि जहाँ एक तरफ भाजपा के नेता हॉउस कमिटी की मांग कर रहे थे वहीँ दूसरी तरफ मंत्री प्रश्नकाल का उपयोग करते हुए मंत्री उत्तरों को जल्दी-जल्दी पढकर निबटाने में लगे थे| इसका कारण एक ये भी था की कहीं ना कहीं पिछले दिनों की कार्यवाही के प्रश्नकाल के दौरान ये मंत्री अपने ही पार्टी के सदस्यों द्वारा घिरते नज़र आये| शहरी विकास मंत्री ,स्वास्थ्य  मंत्री हो या समाजकल्याण मंत्री उनके अपने ही कांग्रेस के सदस्यों ने उके ज़वाबो कि बखिया उधेड़ी |लेकिन आज विपक्ष के नारेबाजी का फायदा उठाते हुए ये मंत्री जल्दी-जल्दी उत्तर देने की फोर्मेलिटी निभाने ने सफल रहे | एक सप्ताह तक चलने वाले इस विधानसभा की कार्यवाही में विपक्ष अपने हॉउस कमिटी की मांग पर अडा रहा जिसमे 5 दिन तो ये सदन से बाहर रहे लेकिन आखिरी दिन कुछ नेता अंत समय तक सदन में उपस्थित रहने में सफल रहे |सत्ता पक्ष ने अपनी चालाकी दिखाते हुए उलटे उन पर ही अवैध कालोनियों पर गृहकर का आरोप लगाते हुए सदन कि नैया अकेले ही पार लगाते देखे गए|
हालांकि इस बात से नकार नहीं जा सकता कि विपक्ष के पास सरकार को घेरने के लिए और भी बहुत से मुद्दे थे और लोगों को उम्मीद थी कि विपक्ष ललिता पार्क हादसा और हाल ही में अस्पतालों की लापरवाही से हुए अज्ञात शख्स की मौत,रेप केस के मुद्दे को सभा में उठाएंगे लेकिन सबको दरकिनार करते हुए उसने पुरे कार्यकाल में कामनवेल्थ जाँच को लेकर ही हंगामा करते रहे |जबकि मुख्यमंत्री ने पहले दिन यह साफ कर दिया था कि विपक्ष चाहे जितना भी हंगामा कर ले,लेकिन हॉउस कमिटी का गठन नहीं होगा|

विधानसभा के कार्यकाल के दौरान पक्ष विपक्ष पर हावी रहा| अवैध कालोनियों पर गृहकर की बात हो या  दिल्ली नगर निगम में भ्रष्टाचार की  या फिर दिल्ली में लगभग चार से पांच लाख पटरी और रेहड़ी वालों को दिल्ली नगर निगम द्वारा नियमित किए जाने की आवश्यकता पर | सत्तापक्ष ने विपक्ष को लताड़ने  में कोई कसर नहीं छोड़ी और विपक्ष कुछ कर दिखने में असमर्थ नज़र आये | 

Friday, October 15, 2010

अनमोल मोती

भोजपुरी फिल्मों के शेक्सपियर कहे जानेवाले मोती ने गुमनामी में दम तोड़ दिया । मीडिया में कम ही लोग इस नाम से परिचित हैं ।देवरिया की तहसील बरहज के गांव बरेजी में जन्में और पले बढें मोती बीए ने काम तो हिन्दी, अंग्रेजी और उर्दू सभी भाषाओं में किया, लेकिन भोजपुरी में विशेष पहचान मिली। 16 साल की उम्र में उनकी कविता दैनिक  आज में प्रकाशित हुईं जिसके बोल थे-" बिखरा दो ना अनमोल-अरि सखि घूंघट के पट खोल " उन्होने खुद  अंग्रेजी में 'लव एण्ड ब्यूटी' और 'ब्यूटी इन वेल' के अलावा उर्दू में 'रश्के गुहर', 'दर्दे गुहर' जैसी पुस्तकों की रचना करने वाले इस कवि को भोजपुरी की 'बन कोयलिया', 'आइल महुआबारी में बहार सजनी' जैसे गीतों ने शोहरत दिलायी।

उनकी भोजपुरी साहित्यिक कविता 'महुआबारी' की लाइने आज भी पुर्वांचल के जन-जन की जुबान पर है, जिसमें कवि ने महुआ के गुण की प्रशंसा करते हुए उसे किशमिश बताया है-

"असो आइल महुआबारी में
बहार सजनी,
महुआ बैल प्रेम से खावें।
गाङी खींचे जोत बनावें।
इ गरीबन के किशमिश अनार सजनी..।"

निसंदेह मोती नाम के इस दीये ने साहित्य को काफी रोशनी दी। काव्यगत सौन्दर्यं का विलक्षण रुप उनकी कविता में देखा जा सकता है।उन्होंने अपनी पुस्तक मोती के मुक्तक में लिखा है –



"प्यार सोना हवे रुप आगी हवे,
ए री दूनो के अजबे कहानी हवे
प्यार गलेला जेतना जोह आंख से,
आंसू ना ह इ सोना के पानी हवे..।"

मोती ने प्रेम को बहुत नजदीक से परखा ,तभी वह दूसरे मुक्तक में लिखते है-

"तूरि के फेंकि द चाहे मीस., मल..,
तहरे खातिर करेजा डहकते रही,
चाहे आन्ही बही चाहे बिजुली गिरी ,
फूल ह त बगइचा महकबे करी।"



जब उन्होंने बीए करा तब तक वे कवि सम्मेलनों में एक गीतकार के रूप में पहचान बना चुके थे। उन्होंने अपने नाम के आगे बीए लगाना शुरू कर दिया। उस समय आज़ादी की जंग जोरों पर थी। अंग्रेज़ों के खिलाफ़ पूरे देश में माहौल बहुत गर्म था। मोती जी भोजपुरी भाषा में क्रांतिकारी गीत लिख लिख कर लोगों को सुनाया करते थे। उसी दौर का उनका एक गीत था -


"भोजपुरियन के हे भइया का समझेला

खुलि के आवा अखाड़ा लड़ा दिहे सा

तोहरी चरखा पढ़वले में का धईल बा

तोहके सगरी पहाड़ा पढ़ा दिये सा "

मोती बीए ने शुरुआती दिनों में बहुत संघर्ष किया ।उन्होने कई अखबारो के संपादकीय विभाग में भी काम किया।स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारत रक्षा कानून के तहत कई बार जेल भी गये।



1944 से 52 के बीच लगभग एक दशक तक बालीबुड में फिल्मों के गीत लिखे ।सुभद्रा (1946),भक्त ध्रुव (1947),साजन (1947) और नदिया के पार (1948),राम विवाह आदि दर्जनों फिल्मों के गीत लिखें।

1984 में उन्हें उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा भोजपुरी की आजीवन सेवा हेतु राहुल सांकृत्यायन   पुरस्कार ।

1992 में हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा भोजपुरी रत्न का अलंकरण।


मोती बीए की रचनाएं -

शेक्सपीयर के सानेट का हिन्दी पद्यानुवाद
काव्य रूपक - "कवि-भावना-मानव"
स्फूट रचना संग्रह - "प्रतिबिम्बिनी"
"समिधा" (गीतांजली)
तड़पते हुए गीत-"मृगतृष्णा"
गीतधारा-"कवि और कविता"
भोजपुरी कविता संग्रह -"सेमर के फूल"
मेघदूत- भोजपुरी पद्यानुवाद
राजनीतिक कविता संग्रह: रांची से राजघा

Quotes on Moti BA

"मुझे इस बात का दुख है कि आपको जैसा सम्मान मिलना चाहिए, वैसा नहीं मिला। पर इससे हताश होने की कोई जरूरत नहीं। "कालोह्म निरवधिर्विपुल च पृथ्वी।"
- डॉ हजारी प्रसाद द्विवेदी

आप सरल शैली के मास्टर हैं। इस शैली ने और कुछ भी दिया हो या न, आपको सरल बना दिया है। सरलता बड़ी साधना की देन है। आपको सन्तुष्ट होना चाहिए। -डॉ हरिवंश राय बच्चन

श्री मोती बीए के सेमर के फ़ूल में भोजपुरी क्षेत्र के वरनन एतना सटीक भइल बा जइसे केमरा में फोटो खींचल होखे।- डॉ विजय नारायण सिंह

18 जनवरी 2009 में इस कवि ने अपनी अंतिम सांस ली.


Monday, February 01, 2010

रहने को घर नहीं है सारा जहाँ हमारा ...

बढती महंगाई से एक आम इन्सान किस कदर व्यथित है यह किसी ने एक कविता के रूप में लिखकर बताने का प्रयास किया..यह उस व्यक्ति की लिखी हुयी है जिसे मै आप सब के साथ शेयर करना चाहती हूँ .. पेश है उसकी चंद पंक्तियाँ ..


कमरा तो एक ही है कैसे चले गुज़ारा,
बीबी गयी थी मायके लौटी नहीं दुबारा,
कहते है लोग मुझको शादीशुदा कुंवारा ,
रहने को घर नहीं है सारा जहाँ हमारा |




महंगाई बढ़ रही है मेरे सर पे चढ़ रही है
चीजो के भाव सुनकर तबियत बिगड़ रही है
कैसे खरीदू मेवे मै खुद हुआ छुहारा
रहने को घर नहीं है सारा जहाँ हमारा..

शुभचिंतको मुझे तुम नकली सूरा पिला दो
महंगाई मुसफिली से मुक्ति तुरत दिला दो
भूकम्प जी पधारो अपनी कला दिखाओ
भाड़े है जिनके ज़्यादा वो घर सभी गिराओ
एक झटका मारने में क्या जायेगा तुम्हारा
रहने को घर नहीं है....,

जिसने भी सत्य बोला उसको मिली न रोटी ,
कपडे उतर गये सब उसे लग गयी लंगोटी
वह ठण्ड से मरा है दिवार के सहारे
ऊपर लिखे हुए है दो वाक्य प्यारे-प्यारे ...

"सारे जहाँ से अच्छा हिंदोस्ता हमारा
हम बुलबुले है इसकी ये गुलसिता हमारा
रहने को घर नहीं है सारा जहाँ हमारा...सारा जहाँ हमारा..||"


Saturday, January 30, 2010

अब किसकी बारी....!

मराठी मानुष के नाम की राजनीति करने वाले और मास्टर सचिन को धमकी देकर अपनी छिछालेदर करा चुके शिवसेना प्रमुख  बाल ठाकरे एक बार फिर अपनी आदत से बाज नहीं   आये| लोकतंत्र में विचारो के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होती है लेकिन  .....पाकिस्तानी क्रिकेटरों को अपनी टीम में शामिल करने की सिर्फ मंशा ज़ाहिर करने पर शाहरुख खान को धमकी के साथ यह नसीहत भी मिल गयी की अगर वो पाक खिलाडियों को टीम में लेंगे तो अच्छा यही होगा की इस्लामाबाद में जाकर खेले|उल्लेखनीय है की शिव सेना अपनी सोच से इतेफाक न रखने वाले सभी लोगो पर हमला करते है और उनके ख़िलाफ़ पर हिंसा का रास्ता अपनाने से भी बाज    नही आते चाहे वह बात क़ुर्बान फिल्म के पोस्टर का हो  
जिसमे करीना कपूर के पीठ न ढके होने पर शिवसेना के कार्यकर्ताओ ने विरोध किया था.....
या फिर मराठी से पहले हिन्दुस्तानी होने पर सचिन को मिली धमकी... तब तो हद ही गयी जब शिव सेना ने एक चैनल पर हमला सिर्फ इसीलिए बोल दिया क्यूंकि वो इनके इन हरकतों का विरोध कर रहे थे ..साम,दाम ,दंड, भेद के पुराने सिद्धांत में विश्वास रखने वाले बाल ठाकरे को यह नहीं पता की गुंडागर्दी के बल पर राजनीति नहीं की जा सकती और इस तरह की हरकते उनके संकीर्ण विचारधरा की परिचायक है|अगर वो अपनी यह आक्रामकता देश की सुरक्षा ,एकता एवं अखंडता को बनाये रखने के लिए करते तो आज हमें उन पर नाज़ होता|
यह जरुरी नहीं है की जो हमें पसंद न हो उसे अपनी पसंद बनाने के लिए हम हिंसात्मक हो जाये क्योकि हिंसा और हमला ही इसका आखिरी इलाज़ नहीं हैअपनी नापसंद जाहिर करने के और भी तरीके ही सकते है|हाल ही में मैंने एक लेख में पढ़ा था की शिव सेना और महाराष्ट्र नव निर्माण सेना(मनसेके घोषणा पत्र में ऐसी बातो को भी समाहित किया गया है जो कार्यकर्ताओ को नफ़रत,हिंसा और वैमनस्य फ़ैलाने के लिए उकसाती है |असलियत में ये दोनों पार्टिया कूड़ेदान में डालने लायक है लेकिन इसमे ज़्यादा संभावना इस बात की है की एक दिन ये घृणा वाली अपनी विचारधारा की ही शिकार होकर झटके से सिकुड़ेगी और दृश्य से गायब हो जाएगी|सबसे बड़ी बिडम्बना तो यह है की इतनी आपराधिक एवं आतंकवादी सरीखे गतिविधिया करने के बाबजूद वहां की सरकार हाथ पे हाथ धरे बैठी है दोषियों को पकड़ने के बजाय शायद इससे अपना मनोरंजन करने वाली सरकार उत्सुकता से इंतजार कर रही है की देखते है अब किसकी बारी है...!

यह बहुत ही दुर्भाग्य पूर्ण बात है की जिस देश में महात्मा गाँधी जैसे महापुरुष पैदा हुए जिन्होंने अहिंसा के बल हमें आज़ादी दिलाई उसी जगह बाल ठाकरे एवं राज ठाकरे जैसे जहरीले नाग भी पैदा हुए जो राजनीती के नाम पर हर समय दंगा ,मारपीट एवं हमले की फ़िराक में किसी को भी डसने के लिए मुहं फैलाये खड़े रहते है ||