Friday, July 13, 2018

SOORMA Movie Review: इंस्पायरिंग कहानी होने के बावजूद बोझिल लगती है 'सूरमा', दोसांझ ने जीता दिल




स्टारकास्ट: दिलजीत दोसांझ, तापसी पन्नू, अंगद बेदी, विजय राज, कुलभूषण खरबंदा
डायरेक्टर: शाद अली
रेटिंग: 3/5(***)


Soorma Movie Review: 'प्लेयर तो प्लेयर है चाहें वो क्रिकेट का हो या फिर हॉकी का...' 'सूरमा' फिल्म की ये लाइन सुनने में तो अच्छी लगती है लेकिन हकीकत यही है कि जिस खिलाड़ी ने पैरालाइज्ड होने के बाद भी खुद को अपने पैरों पर खड़ा किया और देश के लिए कुछ भी कर गुजर गया उसका नाम आपने पहले कभी शायद ही सुना हो. उसी खिलाड़ी संदीप सिंह की बायोपिक है 'सूरमा'. इसे देखने के बाद आपको एहसास होगा कि उनकी ज़िंदगी कितनी प्रेरणादायक है. ये सिर्फ फिल्म नहीं है, ये एक उभरते सितारे के साथ हुए ऐसे हादसे की कहानी है जिससे उबर पाना हर किसी के बस की बात नहीं. एक हादसा जिसने वर्ल्डकप खेलने जा रहे एक चमकते खिलाड़ी को इतना लाचार बना दिया कि उसकी दुनिया हॉस्पिटल के बेड तक सिमट कर रह गई. चलना, टहलना तो दूर करवट बदलने में भी दूसरों के सहारे की दरकार थी. ये फिल्म आपको बहुत हिम्मत देगी और साथ ही ये भी साबित करेगी कि “अगर किसी चीज को दिल से चाहो, तो पूरी कायनात उसे तुमसे मिलाने की साजिश में लग जाती हैं...” ऐसी चाहत संदीप सिंह ने हॉकी और देश के लिए रखी.

सूरमा फिल्म कहानी

हरियाणा के साहबाद में जन्मे संदीप सिंह भारतीय राष्ट्रीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान रह चुके हैं. उन्हें दुनिया के सबसे खतरनाक ड्रैग-फ्लिकर में से एक माना जाता है, जिनके ड्रैग की स्पीड 145 किलोमीटर प्रतिघंटा है और उनकी इस शानदार स्पीड के चलते उन्हें 'फ्लिकर सिंह' के नाम से जाना जाता है. वैसे तो उन्हें बचपन से हॉकी का कोई शौक नहीं था लेकिन प्यार को पाने के लिए उन्होंने इतनी मेहनत की कि उनका सेलेक्शन टीम इंडिया में हुआ. वर्ल्ड कप खेलने जाते समय उनके साथ एक हादसा होता है और वो पैरालाइज्ड हो जाते हैं. लेकिन वो ज़िंदगी से हार नहीं मानते और दोबारा दमदार वापसी करते हैं. ये कैसे मुमकिन हुआ. ये जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी. इसमें उनकी ज़िंदगी के दो पहलुओं को दिखाया गया है. एक समय जब वह व्हीलचेयर पर थे और दूसरा जब वो हॉकी खेलने के लिए ग्राउंड पर थे.

सूरमा फिल्म में एक्टिंग

संदीप सिंह का किरदार पंजाबी सिंगर और एक्टर दिलजीत दोसांझ ने निभाया है. दिलजीत की शानदार एक्टिंग के लिए ये फिल्म देखी जा सकती है. उन्होंने शुरू से आखिर तक अपने हर सीन में जान फूंकने की कोशिश की है. इस फिल्म के लिए की गई उनकी तैयारियां साफ नज़र आती हैं. इससे पहले 'उड़ता पंजाब' और 'फिल्लौरी' में भी उन्होंने साबित किया था कि रोल छोटा हो या बड़ा वो उसे जीवंत कर सकते हैं. इस फिल्म में उन्होंने खुद को साबित कर दिया है.


तापसी पन्नू की गिनती बेहतरीन एक्टिंग करने वाली अभिनेत्रियों में की जाती है लेकिन इस फिल्म में वो कुछ खास नहीं कर पाई हैं. तापसी ने इसमें हरप्रीत का किरदार निभाया है जो हॉकी प्लेयर है और पहली नज़र में ही संदीप सिंह को उनसे प्यार हो जाता है. फिल्म की शुरुआत में तो वो अपने कैरेक्टर में जमी हैं लेकिन बाद में जैसे ही इमोशनल सीन आते हैं वो उसमें जान नहीं भर पाती. तापसी कहीं-कहीं इतनी कमजोर हैं कि फिल्म हल्की लगने लगती है. तापसी के जो मैच फिल्म में दिखाए जाते हैं वो असली नहीं लगते.

इस फिल्म में अगर किसी ने अपनी तरफ ध्यान आकर्षित किया है तो वो हैं विजय राज. वो इस फिल्म में हॉकी कोच की भूमिका में हैं. इस फिल्म के जो शानदार और ह्यूमरस डायलॉग्स हैं वो भी उन्हीं के हिस्से हैं. एक सीन में वो कहते हैं, 'तमंचा कच्छे में रख लो, बिहार से हूं थूक कर माथे में छेद कर दूंगा.'

सूरमा फिल्म डायरेक्शन
इस फिल्म के डायरेक्टर शाद अली की 'झूम बराबर झूम', 'किल दिल' और 'ओके जानू' जैसी कई फिल्में बुरी तरह फ्लॉप हो चुकी हैं. इस फिल्म में भी शाद अली मात खा गए हैं. करीब दो घंटे 15 मिनट की ये फिल्म अगर बायोपिक ना हो और आप खिलाड़ी की ज़िंदगी से सहानुभूति ना रखें तो नहीं देख पाएंगे. फिल्म इंस्पायरिंग है लेकिन उसके साथ ही बहुत धीमी और बोझिल है. फिल्म की कहानी बहुत ही इमोशनल है लेकिन शाद अली अपने एक्टर्स से ढ़ंग की एक्टिंग भी नहीं करा पाए हैं. चाहे संदीप सिंह के भा्ई की भूमिका में अंगद बेदी हों या फिर उनके परिवार के अन्य सदस्य. इतना ही नहीं, फिल्म के कई सीन फेक लगते हैं. इससे पहले खिलाड़ियों पर 'मैरी कॉम', 'भाग मिल्खा भाग' और 'दंगल' जैसी बायोपिक बन चुकी हैं. इन्हें काफी पसंद भी किया गया है. लेकिन यहां शाद अली ने एक बहुत ही शानदार कहानी को बर्बाद कर दिया है.

जब भी हॉकी की बात आती है सबसे पहले दर्शकों को शाहरुख खान की 'चक दे इंडिया' याद आ जाती है. ये फिल्म क्रिटिकली और कमर्शियली दोनों ही मामलों में सुपरहिट हुई थी. कोच की भूमिका में शाहरुख खान की एक्टिंग हो, कहानी हो या फिर उस फिल्म के गाने... आज भी लोग भूल नहीं पाए हैं. जब ये फिल्म बन रही थी उसी दौरान साल 2006 में संदीप सिंह के साथ हादसा हुआ था. 2007 में 'चक दे इंडिया' जब रिलीज  हुई उस समय संदीप सिंह ज़िदंगी की जंग लड़ रहे थे. 2009 में उन्होंने कॉमनवेल्थ गेम्स में पाकिस्तान के खिलाफ अपनी दमदार वापसी की. उनकी वास्तविक कहानी ऐसी है जिसे अगर पर्दे पर ढंग से दिखाया जाए तो इसमें रोमांस, कॉमेडी, ड्रामा और रोमांच सब कुछ है. लेकिन इतनी दमदार कहानी हाथ लगने के बाद भी डायरेक्टर इससे इंसाफ नहीं कर पाएं हैं.


सूरमा फिल्म म्यूजिक


इसके लिए म्यूजिक दिया है शंकर एहसॉन लॉय ने और लिरिक्स गुलजार ने लिखे हैं. सूरमा एंथम सहित इसमे कुल पांच गाने हैं लेकिन एक भी गाना फिल्म में जान नहीं फूंक पाता. गानों को देशभक्ति का भाव जगाने के लिए भी रखा गया हैं लेकिन उसे देखकर रोमांच नहीं आता.


सूरमा फिल्म  क्यों देखें

आप ये फिल्म संदीप सिंह के लिए देख सकते हैं जिन्होंने ज़िंदगी से ऐसी लड़ाई की जिसके बारे में आपने ना अब तक देखा होगा ना ही सुना होगा. कमबैक के समय संदीप सिंह ने पाकिस्तान के साथ हॉकी का जो मैच खेला वो जानकर आप भी रोमांचित हो जाएंगे. 2010 में उन्हें अर्जुन अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया. बॉलीवुड में इससे पहले भी खिलाड़ियों पर कई ऐसी फिल्में बनी हैं जिन्हें लोग पहले तो नहीं जानते थे लेकिन फिल्म बनने के बाद उन्हें कभी भूल नहीं पाए. संदीप सिंह की कहानी भी ऐसी ही है, उनके बारे में आपको जरुर जानना चाहिए.