Saturday, June 30, 2018

Sanju Movie Review: संजय दत्त की 'बैड ब्वॉय' इमेज सुधारने की कोशिश में चमक गए रणबीर कपूर


स्टारकास्ट: रणबीर कपूर, परेश रावल, मनीषा कोईराला, करिश्मा तन्ना, जिम सर्भ, विक्की कौशल, सोनम कपूर, अनुष्का शर्मा

डायरेक्टर: राजुकमार हिरानी

रेटिंग: **** (4 स्टार)

Sanju Movie Review and Ratings: बॉलीवुड में अब बायोपिक के मायने बदल रहे हैं. अब अगर किसी शख्सियत पर फिल्म बनाने की घोषणा हो तो इसका कतई मतलब ये नहीं होगा कि आप उनके बारे में कुछ अलग देख पाएंगे, बल्कि पब्लिक डोमेन में जो जानकारियां हैं उसी में मिर्च मसाला लगाकर परोसा जाएगा. संजय दत्त की बायोपिक 'संजू' इसका ताजा उदाहरण है. इस फिल्म का बेसब्री से इंतजार इसलिए भी था क्योंकि संजय दत्त की पूरी लाइफ ट्विस्ट एंड टर्न्स से भरी हुई है. बचपन से लेकर अब तक की उनकी ज़िंदगी पर नज़र डालेंगे तो शायद वो किसी फिल्म से भी ज्यादा दिलचस्प लगेगी. लेकिन जिस तरह से डायरेक्टर राजकुमार हिरानी ने ये फिल्म बनाई है उसे देखकर तो ऐसा साफ लग रहा है कि ये संजय दत्त की छवि सुधारने से ज्यादा कुछ भी नहीं. ट्रेलर में संजय दत्त ने कहा था कि वो बेवड़े हैं, ठरकी हैं, ड्रग एडिक्ट हैं, पर टेररिस्ट नहीं हैं. इसी बात को फिल्म में पूरी शिद्दत के साथ साबित करने की कोशिश की गई है. हालांकि, अगर इसे नज़रअंदाज करें तो  फिल्म में संजय दत्त की पूरी कहानी को बहुत ही इंटरटेनिंग तरीके से दिखाया गया है. डायलॉग्स अच्छे हैं, कहानी पर पकड़ मजबूत है और बेहतरीन अदाकारी की बदौलत इस फिल्म में आखिर तक दिलचस्पी बनी रहती है. रणबीर कपूर ने संजय दत्त की भूमिका निभाई है और अपने किरदार में ऐसे डूबे हैं कि आपका दिल जीत लेते हैं.

आखिर संजय दत्त कैसे ड्रग्स के चक्कर में फंस गए. वो छोड़ना चाहते थे लेकिन क्यों उससे निकलना नामुकिन लगा. जैसा कि फिल्म में एक डायलॉग भी है- 'हर ड्रग एडिक्ट कोई ना कोई बहाना ढ़ूढता है नशे के लिए...' संजय दत्त को भी ज़िंदगी ने कई वजहें दीं. सुनील दत्त और नरगिस दत्त जैसे पैरेंट्स हों तो बच्चों के लिए उस लेगेसी को आगे बढ़ाना कितना मुश्किल होता है ये भी बताने की कोशिश की गई है.

ड्रग्स, अफेयर से ज्यादा इसमें बाप-बेटे की कहानी दिखाई गई. कैसे पिता सुनील दत्त मुसीबत की हर घड़ी में संजय दत्त के साथ खड़े रहे. ड्रग्स की लत से कैसे निकाला. करियर पर संजय दत्त ध्यान दे सकें इसके लिए हर तरह का हथकंड़ा अपनाया. उन पर अंडरवर्ल्ड से संबंध रखने के आरोप लगते रहे हैं, उस पल उन्होंने संजय दत्त को कैसे सही रास्ता दिखाया. इस बात का एहसास आप एक दृश्य से कर सकते हैं जिसमें दिखाया गया है कि जब संजय दत्त जेल में थे तो तपती गर्मी में सुनील दत्त जमीन पर सोते थे. उन्हें लगता था कि बेटा भी तो वैसे ही सो रहा होगा. सुनील दत्त को टेररिस्ट का बाप बुलाया गया. उतनी मुश्किल घड़ी में भी उन्होंने संजय दत्त को बेल दिलाने के लिए उन्होंने कई बड़े राजनेताओं के चक्कर लगाए.


मुंबई अटैक के बाद संजय दत्त हथियार रखने के इल्जाम में टाडा के तहत गिरफ्तार हुए. बाद में टाडा से बरी कर आर्म्स एक्ट के तरह 6 सला की सजा सुनाई गई. फिल्म में ये दिखाया गया है कि जो हथियार उनके घर से मिले थे वो उनके पास कैसे पहुंचे. इस मामले में इमोशनल दलीलें भी रखी गई हैं जैसे 'अगर मैं ब्लास्ट में इन्वॉल्व होता तो इंडिया वापस आता क्या?' संजय दत्त ने घर में हथियार क्यों रखे इसके पक्ष में बहुत ही हल्की और हास्यास्पद दलील पेश की गई है. संजय दत्त के पिता को जान से मारने की धमकी से लेकर बहनों को रेप की धमकी तक... सब कुछ बहुत ही मार्मिक तरीके से पेश किया गया है. इसे फिल्माते वक्त इतनी चालाकी दिखाई गई है कि दर्शक के तौर पर शायद आप संजय दत्त के गुनाह को भूल जाएं या माफ कर दें.

एक्टिंग
इस फिल्म की जान रणबीर कपूर हैं जो हर सीन में जमे हैं. फिल्म में कई कमियां होने के बावजूद रणबीर कपूर की वजह से ये फिल्म मस्ट वॉच और शानदार है. फिल्म शुरु होने के बाद एक पल ऐसा आता है कि लगता नहीं कि आप संजय दत्त नहीं बल्कि रणबीर कूपर को देख रहे हैं. 'बेशरम', 'रॉय', 'बॉम्बे वेलवेट’, 'तमाशा' और 'जग्गा जासूस' जैसी कई फ्लॉप फिल्में देने के बाद रणबीर के पास खुद को साबित करने के लिए इससे बेहतरीन फिल्म नहीं हो सकती थी. इसे देखने के बाद कोई शक नहीं कि 'रॉकस्टार' और 'बर्फी' के बाद 'संजू' ऐसी फिल्म है जो संजय दत्त के साथ-साथ रणबीर कपूर की किस्मत बदलने वाली है. ड्रग एडिक्ट का सीन हो या फिर ब्रेकअप इफेक्ट या फिर मां नरगिस की मौत के बाद लगा सदमा, हर सीन में रणबीर कपूर ने जान फूंक दी है. फिल्म में ह्यूमर भी है जिससे बोर होने का ज्यादा कुछ स्कोप नहीं दिखता.

रणबीर के अलावा सुनील दत्त की भूमिका में परेश रावल परफेक्ट लगे हैं. रणबीर और परेश रावल की जोड़ी बिल्कुल रीयल लगती है. शायद परेश रावल से बेहतर ये भूमिका कोई भी नहीं कर सकता. 

नरगिस के किरदार में मनीषा कोईराला हैं. उनको फिल्म में जितनी जगह मिली है वो बेहतरीन लगी हैं. उनके अलावा मान्यता की भूमिका में दीया मिर्जा को एकाथ ही डायलॉग्स मिले हैं. अनुष्का शर्मा उस लेखिका की भूमिका में हैं जिसे संजय अपनी बायोपिक लिखने के लिए अप्रोच करते हैं. सोनम कपूर का छोटा सा रोल है, जो फिल्म देखने के बाद तक याद भी नहीं रहता. खास दोस्त की भूमिका में जिम सर्भ और विक्की कौशल इंप्रेस करते हैं.

डायरेक्शन

संजय दत्त जैसे सेलिब्रिटी पर फिल्म बनाना आसान नहीं हैं. ऐसी फिल्मों के साथ कहांनियों में उलझ कर रह जाने का डर हमेशा रहता है. लेकिन यहां 'संजू' की कहानी पेश करने में राजकुमार हिरानी का नज़रिया बहुत साफ दिखता है. उन्होंने सिर्फ वही कहानी दिखाई है जो पहले से ही लोग देख चुके हैं. बस उसमें उन्होंने इमोशन का कॉकटेल मिला दिया है ताकि चटपटा बन सके और लोग उसे चटखारे लेकर देख सकें. इसमें उन्होंने कहानी को जिस तरीके से पेश किया है वो भी दिलचस्प है. हालांकि ये जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी.

फिल्म की कहानी अभिजात जोशी के साथ खुद हिरानी ने ही लिखी है. उन्हें पता है कि कैंसर से मां की मौत, बहनों को रेप की धमकी और बेटे के जेल में रहने पर तपती गर्मी में बाप का जमीन पर सोने जैसे दृश्य दिखाकर लोगों की सहानुभूति कैसे बटोरनी है. ये कहना गलत नहीं होगा कि ये फिल्म संजय दत्त की छवि बदलने के लिए बनाई गई है. खासकर संजय दत्त की खराब छवि के लिए पूरी तरह मीडिया को जिम्मेदार ठहराया है. देखकर लगता है कि फिल्म बनाई है या फिर मीडिया पर भड़ास निकाली है?


हैरानी की बात ये है कि राजकुमार हिरानी ने बताया था कि इस फिल्म के लिए उन्होंने संजय दत्त से करीब 200 घंटे तक बातचीत की. अभिजात जोशी ने बताया था कि फिल्म की स्क्रिप्ट का नेरैशन 725 पन्नों में लिखा गया. अब सवाल है कि क्या संजय दत्त ने अपनी कहानी में कुछ भी नहीं बताया? ये कई सारे सवाल हैं जो फिल्म देखने के बाद दिमाग में आते हैं.

म्यूजिक
'मैं बढ़िया, तु बढ़िया', 'रुबी-रुबी' और 'कर हर मैदान फतह' जैसे फिल्म में कुल तीन गाने हैं लेकिन एक भी ऐसा नहीं है जो आपको आखिरी तक याद रह सके. हां फिल्म के आखिर में संजय दत्त और रणबीर कपूर के साथ में 'बाबा बोलता है' सॉन्ग आपको जरूर पसंद आएगा.

क्यों देखें
कहानी हो या फिर एक्टिंग 'संजू' हर मामले में इस साल की बेहतरीन फिल्मों में से एक है. इसे रणबीर कपूर के लिए देखा जा सकता है. संजय दत्त के फैन हैं तो जरुर देखेंगे. राजुकमार हिरानी ने ये साबित कर दिया है कि कहानी कैसी भी हो अगर उसे कहने का सलीका पता है तो आप दर्शकों का दिल जीत सकते हैं. ये फिल्म ड्रग्स, अल्कोहल या फिर अफेयर के बारे में नहीं बल्कि बाप-बेटे की कहानी है जिसे आप इस वीकेंड फैमिली के साथ देख सकते है.


Saturday, June 16, 2018

'Race 3' Movie Review: बिना स्पीड ही 'रेस' लगाने उतरे सलमान खान, ना सस्पेंस है, ना ट्विस्ट और टर्न


स्टारकास्ट: सलमान खान, अनिल कपूर, डेजी शाह, जैकलीन फर्नांडिस, बॉबी देओल, फ्रेडी दारुवाला, साकिब सलीम


डायरेक्टर: रेमो डिसूजा


रेटिंग: 1.5/5*


2008 में जब 'रेस' रिलीज हुई तो उसे देखने के बाद लोगों में इस सीरिज की फिल्मों की कहानी और सस्पेंस को लेकर एक क्रेज शुरू हुआ जिसे सलमान खान ने 'रेस 3' में पूरी तरह खत्म कर दिया है. पिछली दोनों फिल्मों को अब्बास मस्तान ने डायरेक्ट किया था लेकिन इस सीरिज के लिए प्रोड्यूसर रमेश तौरानी (टिप्स इंटरटेनमेंट) ने रेमो डिसूजा को चुना ताकि सलमान के हिसाब से फिल्म की कहानी में बदलाव किया जा सके. अब डायरेक्टर रेमो डिसूजा और सलमान दोनों ने मिलकर इस फिल्म सीरीज को पूरी तरह बर्बाद कर दिया है. सीरीज की शुरुआत से ही इससे जुड़ी हर फिल्म में एक लाइन है- 'लेट्स द रेस बिगिन'. लेकिन हकीकत यही है कि 'रेस' शुरू होने से पहले ही सलमान खान इससे बाहर हो जाते हैं. 'रेस 3' में ना तो कोई कहानी है, ना ट्विस्ट और ना ही कोई टर्न. इस फिल्म को तो सलमान खान का स्टारडम भी नहीं बचा पाएगा. पिछले साल सलमान खान की 'ट्यूबलाइट' बुरी तरह फ्लॉप रही थी और ऐसा लगता है कि ये उससे भी बड़ा फ्लाप बनाने के लिए किया गया प्रयोग है. संभव है कि ये फिल्म 'ट्यूबलाइट' को टक्कर देने के लिए बनाई गई हो. हो सकता है कि लोग इसे 'रेस' सीरिज की वजह से देख लें लेकिन ये फिल्म सलमान की सबसे खराब फिल्मों में से एक है. हो भी क्यों ना? जब एक्टर्स एक्टिंग छोड़ कहानी, स्क्रिप्ट, लिरिक्स लिखने लगेंगे तो और क्या उम्मीद की जा सकती है!


कहानी


आर्म्स डिलर शमशेर सिंह (अनिल कपूर) एक साजिश का शिकार होने के बाद आईसलैंड शिफ्ट हो जाता है. वहां पर वो हथियारों का अवैध कारोबार करता है. इसमें उसका साथ बड़ा बेटा सिंकदर (सलमान खान) देता है. ये देखकर उसके दूसरे बेटे सूरज (साकिब सलीम) और बेटी संजना (डेजी शाह) को जलन होती है. सिकंदर के बॉडीगार्ड यश की भूमिका में बॉबी देओल हैं. इनकी मां ने मौत से पहले एक वसीयत लिखी होती है जिसमें सिकंदर को 50% और सूरज-संजना को 25-25% प्रॉपर्टी का हिस्सा देती है. ये देखने के बाद सिकंदर से जायदाद लेने के लिए सूरज और संजना एक जाल बुनते हैं. क्या वो अपनी चाल में कामयाब हो पाते हैं? जैकलीन फर्नांडिस कभी सिकंदर तो कभी यश की गर्लफ्रेंड की भूमिका में हैं. विलेन (राणा) की भूमिका में फ्रेडी दारुवाला को लिया गया है.


कहानी का एक हिस्सा ये भी है कि शमशेर सिंह को जब अपने बच्चों के बीच नफरत के बारे में पता चलता है तो क्या होता है? सिकंदर अपना परिवार बचाना चाहता है. क्या वो ऐसा कर पाता है? इसी बीच एक हार्ड डिस्क, जिसमें बहुत सारे लोगों की काली करतूतें छिपी हैं, फिल्म की कहानी को कहीं से कहीं ले जाती है. इसी बीच एक्शन और मारधाड़ भी चलता रहता है और फिर दर्शक भी सोचने लगता है कि ये हो क्या रहा है?


एक्टिंग


ये मल्टी स्टारर फिल्म है. ऐसी फिल्मों को या तो एक्टिंग से बचाया जा सकता है या फिर कहानी से. लेकिन यहां तो कुछ भी नहीं है. अनिल कपूर थोड़े ठीक लगे हैं. उन्हें हम 'रेस' और 'रेस 2' में देख चुके हैं. अपने हाव भाव और एक्टिंग से उन्होंने अपना हिस्सा तो ठीक ही किया है लेकिन बाकी एक्टर्स? डेजी शाह अपने दुश्मनों से लड़ने के लिए ड्रेस और हाई हिल्स में जाती हैं. उनके डायलॉग का पहले ही मजाक उड़ाया जा चुका है. फिल्म में तो उनके डायलॉग इतने खराब हैं कि आपको हंसी आएगी.



बॉबी देओल के पास बॉडी दिखाने के अलावा इसमें ज्यादा कुछ करने को मिला नहीं है. बस एक जगह वो सलमान खान के साथ फाइट करते दिखे हैं और जमे भी हैं. इस सीन में सलमान के साथ बॉबी शर्टलेस भी हुए हैं. लेकिन इसे देखने के बाद ये कह पाना मुश्किल है कि क्या वाकई ऐसी फिल्म से वो कमबैक कर पाएंगे?


जैकलीन फर्नांडिस तो इस फिल्म में बस ग्लैमर का तड़का लगाने के लिए हैं. अंग्रेजी के डायलॉग हों या हिंदी के उनके चेहरे पर भाव एक जैसे ही रहते हैं. उनसे एक्टिंग की क्या उम्मीद कर सकते हैं.


फ्रेजी दारुवाला जैसे एक्टर को इस फिल्म में ऐसा स्पेस ही नहीं दिया गया है कि वो कुछ कर सके. वो बस स्क्रीन पर आते हैं और चले जाते हैं. 2014 में अक्षय कुमार की 'हॉलीडे' में फ्रेडी दारुवाला विलने के रोल में थे और इसके लिए उनकी खूब वाहवाही भी हुई थी. लेकिन यहां पर लगा ही नहीं कि वो कुछ कर रहे हैं. फिल्म में इतने सारे एक्टर्स की भरमार है इस लेकिन कोई भी दमदार एक्टिंग नहीं कर पाया है.


डायरेक्शन


कोरियोग्राफर रेमो डिसूजा ने इसे डायरेक्ट किया है. फिल्म को उन्होंने सलमान खान के हिसाब से बनाया है. यही वजह है कि ये फिल्म देखने लायक भी नहीं बन पाई है. रेमो डिसूजा ने दावा किया था कि इसमें ऐसा एक्शन देखने को मिलेगा कि लोग सैफ को भूल जाएंगे. लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं हो पाया है. स्क्रिप्ट बहुत ढीली है. कहानी चल रही है और वो कहां से कहां चली जाती है ये समझना मुश्किल है. सलमान से तो क्या वो फ्रेडी दारुवाला और बॉबी देओल से भी एक्टिंग नहीं करा पाए हैं.


फिल्म में देसी टच देने के लिए 'गांव की याद आवत है', 'जावत है' जैसी हिंदी का इस्तेमाल किया गया है जो बहुत ही फनी लगता है और खराब भी. ये लाइन्स बहुत ज्यादा इरिटेट भी करती हैं. रेमो जाने माने कोरियोग्राफर हैं. उनकी पिछली फिल्म 'फ्लाइंग जट' फ्लॉप हुई थी. इस सीरिज को अगर वो संभाल लेते तो डायरेक्शन में खुद को साबित करने के लिए उनके पास ये एक बेहतरीन मौका था.


इस फिल्म को बनाने में 150 करोड़ लगे हैं. इसमें महंगी-महंगी गाड़ियों का इस्तेमाल एक्शन सीन्स को पर्दे पर और भी धमाकेदार बनाने के लिए किया गया है. लेकिन सिर्फ गाड़ियों को उड़ाने से अच्छी फिल्में नहीं बनतीं. अगर रेमो थोड़ा सा काम इसकी कहानी पर कर लेते तो ये सीरिज खराब होने से बच जाती.


सिनेमैटोग्राफी और एक्शन सीन्स की कोरियोग्राफी है शानदार


इस फिल्म में अगर कुछ देखने लायक है तो वो है इसकी सिनेमैटोग्राफी. इसकी शूटिंग बैंकॉक, थाइलैंड और अबु धाबी में की गई है. एक्शन सीन के दौरान कुछ स्लो मोशन शॉट्स दिखाए गए हैं जो लाजवाब हैं. 'इंसेप्शन', 'द डार्क नाइट', और 'डंकिर्क' जैसी बड़ी हॉलीवुड फिल्मों में एक्शन की कोरियोग्राफी करने वाले Tom Struthers ने इस फिल्म के कुछ दृश्यों को कोरियोग्राफ किया है. लेकिन एक्शन सीन्स ऐसी जगह फिल्म में डाले गए हैं कि वो शानदार होते हुए भी पूरी फिल्मों को खराब होने से नहीं बचा पाते.


म्यूजिक


'रेस 3' में कुल सात गाने हैं. मीका सिंह और यूलिया वंतूर की आवाज में 'पार्टी चले ऑन' (Party Chale On) है जिसे पसंद किया गया है. इसके अलावा 'सेल्फिश' (Selfish), 'अल्लाह दुहाई है' (Allah Duhai Hai), और 'हीरिए' (Heeriye) गाना भी लोगों को पसंद आ रहा है. लेकिन 'रेस' के 'ज़रा-ज़रा' (Zara Zara Touch Me) और 'रेस 2' के 'लत लग गई' (Lat Lag Gayee) जैसे गानों की टक्कर में इसमें कुछ भी नहीं है. इसका 'अल्लाह दुहाई है' गाना अच्छा है लेकिन उसे तो आप यू-ट्यूब पर भी देख सकते हैं.


क्यों देखें/ना देखें


अगर आप सलमान खान के फैन हैं तो भी आपने उनसे ऐसी फिल्म को उम्मीद तो बिल्कुल भी नहीं की होगी. लेकिन अगर आप 'रेस' सीरिज के फैन हैं तो इसे देखकर आप टॉर्चर होने जैसा महसूस करेंगे. आप हर सीन में 'रेस के पुराने खिलाड़ी' सैफ अली खान को मिस करेंगे. इस फिल्म में जैकलीन एक सीन में कहती हैं, 'इतने झटके, आखिर ये कब खत्म होगा.' फिल्म देखते समय आपको भी यही लगता है कि आखिर ये कब खत्म होगा.


आखिर में सलमान ने ये भी बता दिया है कि 'रेस' अभी बाकी है  और इसकी अगड़ी कड़ी जल्द आने वाली है.