Friday, February 16, 2018

मूवी रिव्यू: नीरज पांडे की 'अय्यारी' में दम नहीं है



स्टार कास्ट: मनोज बाजपेयी, सिद्धार्थ मल्होत्रा, रकुल प्रीत सिंह, कुमुद मिश्रा, नसीरूद्दीन शाह, आदिल हुसैन
डायरेक्टर: नीरज पांडे
रेटिंग: 2.5 स्टार

आपको गूगल करने की जरूरत नहीं सबसे पहले आपको 'अय्यारी' का मतलब बता देते हैं. अय्यारी शब्द अय्यार सेे बना है. अलग-अलग रूप बदल ले उसे 'अय्यार' कहते हैं. इस फिल्म के डायरेक्टर नीरज पांडे हैं जिन्होंने इससे पहले 'ए वेडनेसडे', 'बेबी' और 'स्पेशल 26' जैसी फिल्में बनाई हैं. ये फिल्म अगर आपने देखीं हों तो जरूर पता होगा कि इन्हें क्यों इतना पसंद किया गया. जबरदस्त कहानी, दमदार एक्टिंग, सस्पेंस और आखिर में लोगों के लिए एक महत्वूपर्ण मैसेज ने इन फिल्मों को अब तक की शानदार फिल्मों में से एक बना दिया. लेकिन नीरज की 'अय्यारी' में वो बात नहीं जो उन फिल्मों में थी.

कहानी

वैसे तो फिल्म की कहानी ऐसी है कि कहां आ रही है और कहां जा रही समझ नहीं आता. फिर भी आपको बता देते हैं. कर्नल अभय सिंह (मनोज बाजपेयी) और मेजर जय बख्शी (सिद्धार्थ मल्होत्रा) दोनों आर्मी की सीक्रेट यूनिट के लिए काम करते हैं. अचानक जय बख्शी गायब हो जाता है और वो कुछ सूचनाएं लीक करने लगता है जिसकी वजह से अभय उसे 'गद्दार' मानता है. फिर ये कहानी दिल्ली से होते हुए लंदन तक पहुंच जाती है.

इस बीच आर्म्स डील में किस तरह घोटाले होते हैं, कश्मीर के मुद्दे पर कैसे सबकी दुकानें चल रही हैं जैसी बहुत सारी छोटी-छोटी कहानियां देखने को मिलती हैं. बीच में कॉमन मैन नसीरूद्दीन शाह की भी एंट्री होती है और उनके जरिए सस्पेंस क्रिएट किया जाता है. आर्म्स डीलर जो कि चार गुना कीमत पर हथियार बेचता है वो कैसे आर्मी चीफ को ब्लैकमेल करता है ये दिखाया जाता है. आखिर जय बख्शी वाकई गद्दार है? क्या अभय आर्मी चीफ को ब्लैकमेलिंग से बचा पाता है? इस फिल्म में कॉमन मैन का क्या कनेक्शन है? ये सब जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी.

एक्टिंग

जिस फिल्म में इंडस्ट्री के सारे दिग्गज एक्टर हो उसमें एक्टिंग की क्या बात करें. कश्मीर, करप्शन और देश तो ऐसा मुद्दा है कि जिस पर ठीक-ठाक भी कहानी हो तो लोगों में देशभक्ति जग जाती है. लेकिन यहां ऐसा नहीं हो पाता. नसीरूद्दीन शाह को देखकर 'ए वेडनेसडे' की याद आ जाती है जिसमें कॉमन मैन सब कुछ हिलाकर रख देता है लेकिन यहां वो भी फीके पड़ गए हैं.

इस फिल्म में अगर कुछ देखने लायक है तो वो हैं मनोज बाजपेयी. उनका हर एक सीन दमदार है. वहीं सिद्धार्थ मल्होत्रा ने अच्छी एक्टिंग की है. वो फिल्म में कई अलग-अलग रूप में दिखे हैं. हालांकि फिर भी कुछ खास असर नहीं छोड़ पाते हैं. 2015 में आई 'ब्रदर्स' के बाद सिद्धार्थ की फिल्में लगातार फ्लॉप हो रही हैं. 'बार-बार देखो', 'ए जेंटलमैन' और 'इत्तेफाक' इससे पहले कुछ खास नहीं कर पाई है और इस फिल्म को देखकर भी नहीं लगता कि  कुछ खास होने वाला है. अब सिद्धार्थ के लिए ये चुनौती भरा समय है कि फिल्मों के चुनाव पर ध्यान दें.



फिल्म में फीमेल एक्टर्स की बात करें तो रकुल प्रीत सिंह इस फिल्म में क्यों हैं ये शायद मेकर्स को भी नहीं पता. जरूरी नहीं है कि फिल्म बन रही हो तो उसमें जबरदस्ती लव एंगल डाल दिया जाए. यहां ऐसा ही हुआ है. कुछ एक सीन में वो दिखी हैं. एक गाना भी उनपर फिल्माया गया है जो ठीक ठाक है. वहीं मनोज बाजयेपी की पत्नी की भूमिका में पूजा चोपड़ा के भी एक, दो सीन ही हैं.

डायरेक्शन

नीरज पांडे अपनी फिल्मों में सस्पेंस बरकरार रखने में कामयाब रहते हैं. इस फिल्म को देखते वक्त भी दिमाग में यही रहता है कि कुछ तो ऐसा होगा जो असरदार होगा. इस फिल्म में सस्पेंस तो बरकरार रह जाता है लेकिन बाद में कुछ नहीं मिलता. डिफेंस डील को लेकर जो कहानी हम दो घंटे तक देखते हैं आखिर में वो एक बिल्डिंग पर आकर खत्म हो जाती है. ऐसा लगता है कि इतने बड़े-बड़े मुद्दों पर ध्यान आकर्षित करने वाली ये फिल्म एक छोटी सी बात को भी अच्छे से नहीं दिखा पाती.

कमियां

स्क्रिप्ट बहुत ढीली है. फिल्म बहुत ज्यादा  लंबी है. कहानी भटकी हुई है.  पता नहीं नीरज पांडे क्या दिखाना चाहते थे और क्या दिखाया है. वो डिफेंस डील में घोटाला दिखान चाहते थे, वो कश्मीर के मुद्दे को भुनाना चाहते थे या फिर आर्मी में चल रही दिक्कतों से रू-ब-रू कराना चाहते थे. बहुत कन्फ्यूजन दिखाई देती है. उसी में लव स्टोरी भी जबरदस्ती डाल दी गई है. इतने गंभीर मुद्दे पर चल रही फिल्म में जब अचानक लव एंगल आता है तो भटकाव वहीं से शुरू हो जाता है और फिल्म खत्म होते-होते बोझिल बन जाती है.

क्यों देखें/ना देखें

इस फिल्म में कई बड़ें मुद्दों पर बात की गई गई है और यही वजह है कि ये अपनी किसी भी बात को अच्छे से बयां नहीं कर पाती है. ऐसा लगता है कि हम टुकड़ों में फिल्म देख रहे हैं. आर्म्स डील में हो रहे घोटाले को लेकर बनी ये फिल्म क्लाइमैक्स में फुस्स निकलती है. दमदार एक्टर्स की भरमार होते हुए ये भी इसे देखने के बाद ना तो कोई डायलॉग याद रह पाता है और ना ही कोई सीन. अगर आप नीरज पांडे की फिल्मों के फैन हैं तो ये फिल्म आपको बहुत बोर करेगी. हां, ये आप मनोज बाजपेयी के लिए देखना चाहें तो कुछ और बात है.

Sunday, February 11, 2018

Padman Movie Review

स्टार कास्ट: अक्षय कुमार, राधिका आप्टे, सोनम कपूर

डायरेक्टर: आर. बाल्की

रेटिंग: ****

सैनेटरी पैड और पीरियड जैसे मुद्दे पर तो लोग बात तक नहीं करना चाहते. अबतक हॉलीवुड से लेकर बॉलीवुड तक किसी भी बड़े स्टार ने इस विषय पर फिल्म बनाने की बात सोची तक नहीं लेकिन ये हिम्मत अक्षय कुमार ने दिखाई. एक बड़े स्टार के लिए ऐसा विषय चुनना बहुत मुश्किल है जिसका नाम लेते ही लोग नज़रें चुराने लगते हैं. जब लोग देखेंगे और सुनेंगे ही नहीं तो समझेंगे कैसे. लेकिन इस फिल्म के जरिए अक्षय कुमार अपनी बात दर्शकों तक आसान भाषा में पहुंचाने में कामयाब रहे हैं. पिछले साल इसी विषय पर 'फुल्लू' फिल्म आई थी लेकिन शायद ही आपने उस बारे में सुना भी हो. 'पैडमैन' के आने से पहले इसे लेकर दो डर थे- पहला कि कहीं ये बहुत फिल्मी ना हो जाए और दूसरा कि कहीं इसे डॉक्यूमेंट्री जैसी ना बना दें. लेकिन फिल्म देखने के बाद ये कहा जा सकता कि ये फिल्म गेम चेंजर भी साबित होने वाली है क्योंकि इसके बाद पीरियड्स और सैनेटरी पैड जैसे शब्दों को लेकर लोगों की राय बदलने वाली है.

ये फिल्म तमिलनाडु के रहने वाले अरूणाचलम मुरूगनाथम के ऊपर बनी है जिन्होंने सैनिटरी पैड बनाने वाली मशीन का आविष्कार किया. इनकी कहानी को अक्षय की पत्नी ट्विंकल खन्ना ने अपनी किताब में लिखी उसके बाद इस पर फिल्म बनाने के लिए उन्हें राजी किया. यहां पढ़ें असली पैडमैन की पूरी कहानी

कहानी

ये फिल्म मध्य प्रदेश के बैकग्राउंड में बनी है. इसमें साल 2001 के दौरान की कहानी दिखाई गई है. लक्ष्मीकांत चौहान (अक्षय कुमार) अपनी पत्नी से बेइंतहा मोहब्बत करता है. लोग प्यार से उसे लक्ष्मी बुलाते हैं. जैसे ही पता चलता है कि उसकी पत्नी गायत्री (राधिका आप्टे) अपने पीरियड्स (माहवारी) के दौरान गंदे कपड़ों का इस्तेमाल करती है तब वे इस बात को लेकर परेशान हो जाता है. गंदगी से कई बड़ी बीमारियां फैलती हैं और उसे इस बात की फिक्र है कि गायत्री को कुछ हो न जाए. फिर लक्ष्मी गायत्री को सैनेटरी पैड लाकर देता है लेकिन कीमत देखकर पत्नी इसे इस्तेमाल करने से मना कर देती है.

padman2

इसके बाद लक्ष्मी को आइडिया आता है कि इसे कम लागत में भी बनाया जा सकता है. बार-बार कोशिश करने पर भी वे वैसा पैड नहीं बना पाता जो कंपनियां बनाती हैं. फिर वे सैनेटरी पैड की मशीन बनाने की ठान लेता है. लेकिन इसके लिए उसे बड़ी कुर्बानी देनी पड़ती है. पत्नी, मां, बहन और समाज हर कोई उसके अस्तित्व को ही नकार देता है. लोगों को लक्ष्मी माहवारी की तरह ही 'गंदगी' लगने लगता है. IIT से आविष्कार के लिए अवॉर्ड जीतने पर लोग उसकी तस्वीर देखकर खुश तो होते हैं लेकिन अगले ही पल जब देखते हैं कि ये सम्मान पैड के लिए मिला है तब उसे दुत्कारते भी हैं और लानत भरी नज़रों से देखते हैं.

लेकिन वो हौसला नहीं हारता और लगातार डटा रहता है. इसके बाद अचानक उसकी ज़िंदगी में परी (सोनम कपूर) की एंट्री होती है और वो उसकी प्रेरणा बन जाती है. पैड के इस्तेमाल जैसी जिस छोटी सी बात को लक्ष्मी औरतों को नहीं समझा पाता वो परी चुटकियों में कर देती है और फिर जो सिलसिला चलता है वो थमने का नाम नहीं लेता है. लेकिन अब भी उसका परिवार उसे गलत ही मानता है. उसे यूएन (यूनाइटेड नेशंस) में स्पीच देने के लिए बुलाया जाता और वहां पर लक्ष्मी जो बोलता है वो बातें सुनने वालों के दिल में उतर जाती हैं. लक्ष्मी टूटी-फूटी अंग्रेज़ी में कहता है- 'जब आपकी मां, बहन और बेटी मजबूत होती हैं तब देश मजबूत होता है.' ये एक लाइन बहुत बड़ा संदेश देती है.

 


हमारी सोसाइटी में आज भी पीरियड के दौरान महिलाओं को जिस हालात से गुजरना पड़ता है वो किसी से छिपा नहीं है. पीरियड आने पर घर के किसी कोने में पड़े रहना, अलग बिस्तर पर सोना, पति को ना छूना और खाना ना बनाना, बड़ों को खाना-पानी ना देना... इस तरह के जो भ्रम हैं ये हुबहू वही दिखाती है और फिर बताती है कि अब उससे बाहन निकलने का समय आ गया है.

एक्टिंग

अक्षय कुमार ने पैडमैन की भूमिका को बहुत ही सहजता ने निभाया है. इस रोल को जीवंत करने के लिए वे फिल्म में पैंटी और पैड तक पहन लेते हैं. जब कोई उनकी बात नहीं समझता तब उनके चेहरे पर मजबूरी दिखाई देती है. उन्हें देखकर ये कहा जा सकता है कि इस रोल को उनसे बेहतर शायद ही कोई निभा सकता था. ऐसा इसलिए भी क्योंकि इस तरह का चुनौतीपूर्ण रोल करना हर किसी के बस की बात भी नहीं है. पर्दे पर ज़्यादातर एक्टर्स एक्शन और रोमांस ही करना चाहते हैं. कोई ऐसे सामाजिक मुद्दों पर फिल्म नहीं बनाना चाहता क्योंकि उनकी छवि का सवाल होता है. लेकिन ये फिल्म करके अक्षय कुमार हीरो से सुपरहीरो बन गए हैं. इससे पहले भी उन्होंने 'टॉयलेट एक प्रेम कथा' को चुना और लोगों ने उसे भी देखा. इस फिल्म के साथ अक्षय ने बिना कुछ कहे बॉलीवुड सुपरस्टार्स को ये संदेश भी दिया है कि वास्तविक मुद्दों पर भी इंटरटेनिंग फिल्में बनाई जा सकती हैं. साथ ही, अब स्टारडम बनाए रखने के लिए ज़रूरी है कि आप दर्शकों को कुछ नया दें और एक्सपेरिमेंट करते रहें.

padman3

लक्ष्मी जो कुछ भी है वो गायत्री यानि राधिका आप्टे की वजह से है. इससे पहले राधिका 'पार्च्ड' में ग्रामीण महिला की भूमिका में दिख चुकी हैं और उन्होंने अपनी भूमिका से इस फिल्म में जान डाल दी है. वहीं सोनम कपूर के लिए भी ये फ्रेश स्टार्ट है. इसमें आधी फिल्म में राधिका है और बाकी में सोनम हैं और दोनों ने ही अपना दम दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है.

डायरेक्शन

इस फिल्म के डायरेक्टर आर. बाल्की हैं जो अपनी हर फिल्म में दर्शकों के सामने कुछ नया परोसते हैं. टीवी पर बहुत ज्यादा पॉप्युलर होने वाले सैनिटरी पैड्स के जैसे 'दाग अच्छे हैं', 'वॉक एंड टॉक' और 'जागो रे' जैसे एड्स के आइडियाज़ उन्हीं के हैं. इसके बाद फिल्मों की बात करें तो 'चीनी कम', 'पा', 'शमिताभ', 'की एंड का' और अब पैडमैन. अगर आपने उनकी ये फिल्में देखी हैं तो जरूर समझ पाएंगे कि कुछ नया करना ही उनका जुनून है और इस बार उन्होंने बिना कुछ घुमाए-फिराए बहुत सटीक तरीके से अपनी बात कह दी है. सैनिटरी पैड के इस्तेमाल को उन्होंने पर्दे पर इस तरीके से उकेरा है कि चाहे स्कूली लड़कियां हों, गांव की औरतें हों या फिर पुरुष हों...हर कोई इसे चाव से देखेगा और समझेगा भी.

फिल्म की कहानी भी बाल्की ने ही लिखी है. वे यहां भटके नहीं हैं. दरअसल सैनेटरी पैड को केंद्र में रखकर उन्होंने एक तीर से कई शिकार किए हैं. सोनम कपूर का एक डायलॉग है- 'तुम गांव हों, मैं शहर...इन्हें तो आज तक डिजिटल इंडिया भी नहीं जोड़ पाया.' ये सीन आता है और निकल जाता है लेकिन ये एक बहुत बड़ी हकीकत को बस एक डायलॉग में बयां कर जाता है.

padman4

कमियां

इस फिल्म की सबसे बड़ी खामी ये है कि इसमें कई सारे सीन सरकारी विज्ञापन जैसे हैं. हो सकता है कि ऐसा इसलिए भी किया गया हो ताकि कहानी ज्यादा फिल्मी ना हो जाए लेकिन ये बातें खटकती हैं. इसमें सैनेटरी पैड के साथ-साथ महिलाओं के आत्मनिर्भर बनने पर भी जोर दिया गया है. ऐसे सीन्स को बिल्कुल सरकारी विज्ञापनों के जैसे ही फिल्मा दिया गया है. महिलाओं का बैंक जाना, लोन लेना, चुका देना...इत्यादि. हालांकि इसे भी पैड मैन की कहानी के साथ जोड़कर ही दिखाया गया है. इतना ही नहीं जब फिल्म शुरू होती है तो कुछ देर तक लगातार ऐसा लगता है देखने वाला कोई विज्ञापन देख रहा है. करीब आधे घंटे बाद फिल्म रफ्तार पकड़ती है और फिर कहीं भी ध्यान भटकने नहीं देती. 

कुछ डायलॉग सोचने पर मजबूर करते हैं-

फिल्म में एक सीन है जो उन लोगों को जरूर वास्तविक लगेगा जिन्होंने कभी पैड खरीदा हो. लक्ष्मी जब पैड खरीदने जाता है तो दुकानदार न्यूज़पेपर में लपेटकर पैड काउंटर के नीचे से थमा देता है. तब पैडमैन पूछता है- 'चरस-गांजा दे रहे हो क्या?' सीन तो खत्म हो जाता है लेकिन सवाल बना रहता है. उम्मीद है कि फिल्म देखने के बाद ना पैड मांगने वाला शर्माएगा और ना ही देने वाला.

म्यूजिक

इस फिल्म की शुरुआत ही 'आज से मेरी' गाने से हुई है. बिना समय गंवाए एक गाने में ही शादी, प्यार, इश्क और लक्ष्मी-गायत्री की बॉन्डिंग को दिखा दिया गया है. फिल्म का म्यूजिक अमित त्रिवेदी ने दिया है और गीत कौसर मुनीर ने लिखे हैं. सारे ही गाने बहुत प्यारे हैं और सुनने में भी अच्छे लगते हैं. 'आज से मेरी' गाना बहुत ही रोमांटिक है और पहले ही पॉप्युलर हो चुका है. 'हुबहू' गाना भी लोग पहले ही खूब देख चुके हैं. पैडमैन की बैचेनी को दिखाने के लिए 'साले सपने' गाने को रखा गया है जो सटीक लगता है.
क्यों देखें

ये फिल्म हर किसी को इसलिए देखनी चाहिए ताकि वो आसानी से समझ सके कि पीरियड औरतों की बीमारी नहीं है. हां, अगर उसे लेकर सावधान नहीं रहे तो बीमारी जरूर हो सकती है. घर हो, परिवार हो या फिर स्कूल...इसके बारे में खुलकर बात होनी चाहिए. पीरियड्स को लेकर ना शर्माने की जरूरत है और ना ही छिपाने वाली कोई बात. आपको जानना चाहिए कि 15 से 24 साल की उम्र की लड़कियों में से 42 फ़ीसदी ही सैनिटरी पैड का इस्तेमाल करती हैं, बाकी  62 फ़ीसदी कपड़े, पत्ते या फिर राख तक का इस्तेमाल करती हैं जिससे कई बड़ी बीमारियां होती हैं. ये आंकड़े कुछ समय पहले नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे ने जारी किए थे. ये फिल्म आपको यही समझाने में मदद करेगी कि ये शर्माने का नहीं बल्कि कुछ कर दिखाने का मौका है. सोच बदलेगी तभी हालात बदलेंगे. तो इस वीकेंड आप अपने परिवार के साथ कुछ नया देखिए ताकि जिस पर आपने अबतक कोई बात नहीं कि वो फिल्म के जरिए कुछ ही घंटो में समझ आ जाए.