Saturday, March 07, 2015

डॉक्यूमेंट्री विवाद: 'देश के करोड़ों मर्दों को पता तो चले कि वे रेपिस्ट की तरह सोचते हैं'




महज एक डॉक्यूमेंट्री पर बैन से क्या बदल जाएगा पुरुषप्रधान सोच?

निर्भया रेप कांड पर बनी डॉक्युमेंट्री 'इडियाज डॉटर' को लेकर संसद से सड़क तक हंगामा मचा हुआ है. भारत सरकार ने तो बैन लगा दिया लेकिन फिर भी लोगों ने इसे खूब देखा है. इसकी प्रसिद्धी का पूरा श्रेय भारत सरकार को ही जाता है. यह डॉक्यूमेंट्री महिला दिवस पर रिलीज होने वाली थी लेकिन आनन-फानन में बीबीसी ने ब्रिटेन में इसे पहले ही रिलीज कर दिया. इंटरनेट के जमाने में किसी फिल्म या वीडियो को बैन करने का कोई मतलब नहीं है. उधर रात तीन बजे ब्रिटने में इसका प्रसारण हुआ और इधर सुबह होते ही भारत में लोगों ने खूब देखा. इसे देखने के बाद मुझे लगा कि इस बेहद ही खूबसूरत डॉक्यूमेंट्री को सब को देखना चाहिए ताकि पुरुषप्रधान समाज की सोच से हर कोई वाकिफ हो सके.

कारण ये है कि आपको इस दिन महिला सशक्कितकरण और महिलाओं से जुड़े हर मुद्दे पर समारोहों में तो खूब भाषण सुनने को मिलेंगे लेकिन कितने लोग उसमें इस बात को लेकर गंभीर हैं, यह कह पाना मुश्किल है. कम से कम इस डॉक्यूमेंट्री को देखकर महिलाएं अपने समाज और देश की सच्चाई से रूबरू तो हो पाईं. इसे देखकर एक बार फिर वो दर्द जी उठा जिसे लेकर लोग सड़कों पर उतरे थे. उस अंतहिन दर्द को फिर से महसूस कर पाएंगे जिसे भूलकर हम अपनी-अपनी जिॆंदगी में आगे बढ़ चुके हैं.

इस समय इस हकीकत को दिखाना बहुत ही जरूरी था. अगर ऐसा नहीं होता तो एक बार फिर देश में निर्भया की गूंज न होती.

दुख इस बात का है कि जो सरकार यह नारा देती है ''नहीं होगा नारी पर वार'' उसने ही इस पर बैन लगा दिया. यहां बात रेपिस्ट की नहीं यहा बात निर्भया की है, उसके अस्तित्व की है, उसके सम्मान की थी. ये कैसा देश है मेरा जहां सरकार निर्भया फंड में 1000 करोड़ तो दे सकती है लेकिन उस पर बनी एक डॉक्यूमेंट्री को दिखाने पर पाबंदी लगा देती है. ये नारी के साथ कैसा न्याय है?

बैन भी इसलिए क्योंकि इसमें रेपिस्ट का इंटरव्यू है. लेकिन किसी भी फिल्म या डॉक्यूमेंट्री को देखे बिना ही बैन लगाने की वजह समझ नहीं आती. रेपिस्ट के जिस बयान को लेकर इतना हंगामा हुआ उसे जानना भी जरूरी था. उसकी बातें किसी भी मामले में समाज के बहुतेरे लोगों के बयान से अलग नहीं था. जैसा कि जावेद अख्तर ने कहा भी कि ''मर्दों को पता तो चले कि वे रेपिस्ट की तरह सोचते हैं.''

इस डॉक्यूमेंट्री में अगर कुछ विवादित है तो वह है दरिंदों के दोनों वकील का बयान. डॉक्यूमेंट्री में वकील एपी शर्मा बड़े ही गर्व से कहते हैं कि 'अगर मेरी बहन या बेटी शादी के पहले ऐसे काम करती हैं तो मैं पूरे परिवार के सामने उस पर पेट्रोल डालकर जला दूंगा.' दूसरे वकील एम एल शर्मा ने भी कहा है कि यदि लड़कियां बिना पर्याप्त सुरक्षा के बाहर जाती हैं, तो बलात्कार की ऐसी घटनाएं होनी तय हैं. रेपिस्ट मुकेश का भी बयान है कि जिसमें उसका कहना है कि ''शरीफ लड़कियां रात में नहीं घूमती हैं..लड़कों से ज्यादा लड़कियां रेप के लिए जिम्मेदार हैं.'' मुझे कहीं से भी नहीं लगता कि वकीलों और रेपिस्ट दरिंदे के बयान में कोई फर्क है.

अब सोचने वाली बात यही है कि जिस देश में वकील का काम एक संभ्रात पेशा माना जाता है. अब जिस देश में वकील ही यह सोचता हो वहां पर महिलाओं की स्थित का अंदाजा लगाया जा सकता है. यहां हम कदम से कदम मिलाकर चलने की बात करते हैं उसी जगह वकील एवं शिक्षित वर्ग इस तरह का शर्मनाक रूख रखता है. जिस सरकार ने एक रेपिस्ट की वजह से इस पर बैन लगा दिया बिना यह जानें कि इसमें क्या है क्या नहीं? उस सरकार के कानों तक क्या उस वकील की आवाज नहीं पहुंची. इस डॉक्यूमेंट्री के रिलीज होने के चार दिन बाद बार कौंसिल ऑफ इंडिया ने उन्हें नोटिस भेजा है.

गौर करने वाली एक बात यह भी है कि इसमें जेल में रेपिस्टों के मनोचिकित्सक बताते हैं, 'जेल में कुछ ऐसे अपराधी भी हैं जो बताते हैं कि उन्होंने 200 से ज्यादा रेप किए हैं और उन्हें करीब 12 बार ही सजा हुई हैं. उनका यह भी कहना है कि उन्हें सिर्फ 200 याद हैं हो सकता है कि इससे भी ज्यादा बार किए हों.'

इसे पढ़ने के बाद आपको यह बताने की जरूरत नहीं है कि किसी भी अपराधी के मन में कोई डर है. उनका सोचना तो सिर्फ यही है कि सरकार क्या कर लेगी. और सोचेंगे भी क्यों नहीं? इतने बड़े आंदोलन के बाद भी निर्भया के मां-बाप आज भी दोषी को सजा दिलाने के लिए दर-दर भटक रहे हैं. जिस केस के लिए पूरा देश सड़को पर आ गया जब उसका ही कुछ नहीं हुआ तो बाकियों का क्या होगा?

इसमें दरिंदो के परिवार, वकील, रेप कानून पर बनी जस्टिस जे एस वर्मा कमेटी लीला सेठ और गोपाल सुब्रमणयम का इंटरव्यू दिखाया गया है. उस पुलिस ऑफिसर ने अपना पक्ष रखा है जिसने पहली बार निर्भया और उसके दोस्त को नग्न अवस्था में देखा था, सफदरजंग की उस डॉक्टर को जगह दी गई है जिसने निर्भया का इलाज किया था. इस केस की पड़ताल कर रहे पुलिस ऑफिसर, और रेपिस्टों के परिवार को भी जगह दी गई है. इसमें निर्भया के अध्यापक ने कई अनजान पक्ष को भी बताया है. जब टीचर ये कहता है 'उसके सपने थे... बहुत सारे सपने थे बहुत बड़े सपने थे....' तो आपको रोंगेटे खड़े हो जाते हैं. निर्भय़ा के मां-बाप जब उसकी छोटी-छोटी बातें को शेयर करते हैं तो ऐसा लगता है कि कोई फिर से उस घाव को कुरेद रहा है.


इस डॉक्यूमेंट्री की डायरेक्टर लेसली उडविन ने महिलाओं के उस दर्द को बयां कर दिया है जो वो कब से अपने सीने में दबाएं बैठीं थी. ऐसी करने की हिमाकत आज तक कोई नहीं कर पाया. जहाँ पर इस हकीकत को देखकर एक बार फिर आपका दिल दहल जाएगा वहीं अगर इसके पीछे का सच आपको रूला देगा. विवादों के बीच यह डॉक्यूमेंट्री आपके मन मैं कई ऐसे सवाल छोड़ जाएगी जिसका जवाब आपको खुद ही ढ़ूढ़ना होगा.