Saturday, September 20, 2014

Movie Review: Not 'Khoobsurat' as old one, you can watch for Sonam-Fawad chemistry

सोनम कपूर और फवाद की शानदार कमेस्ट्री के लिए देखें खूबसूरत

रेटिंग:  ** (दो स्टार)

सोनम कपूर और फवाद स्टारर खूबसूरत 'वन टाइम वॉच' फिल्म है. अगर आप 1980 में रिलीज रेखा की 'खूबसूरत' से इसकी तुलना करेंगे तो थोड़े निराश हो सकते हैं. उस 'खूबसूरत' के सामने यह फिल्म बहुत ही हल्की लगती है. सोनम और फवाद की केमिस्ट्री के लिए यह फिल्म देखी जा सकती है. इस फिल्म में सोनम कपूर को देखकर कहीं कहीं लगता है कि वह एक्टिंग कम, ड्रामा ज्यादा कर रही हैं. लेकिन पाकिस्तानी एक्टर फवाद खान ने इस फिल्म को जान दे दी है. निर्देशक शंशाक घोष फिल्म में कहीं भी कन्फ्यूज्ड नहीं हुए हैं और जो दिखाना चाहते हैं उसी को दिखाया है.

कहानी :
दिल्ली की रहने वाली चुलबुली डॉक्टर मिली चक्रवर्ती (सोनम) एक साइकोथेरेपिस्ट हैं. मिली ऐसी डॉक्टर हैं जिन्हें सेल्फी लेने का शौक है और दो तीन बार ब्रेकअप हो चुका है क्योंकि उन्हें अपनी लाइफस्टाइल में कोई रोक टोक पसंद नहीं. मिली की मां मंजू चक्रवर्ती (किरण खेर) को बिना रोक टोक अपने बच्चों की परवरिश करने में यकीन है. मिली को संभलगढ़ के बीमार राजा शेखर राठौर को ठीक करने के लिए उनके महल में जाना पड़ता है जो कि खुद ही कभी ठीक नहीं होना चाहते. राठौर परिवार में हर एक काम निर्मला दास राठौर (रत्ना शाह पाठक) के नियम कायदे के मुताबिक होता है.
   
यहां परिवार के लोगों की इतनी फुरसत नहीं कि वे एक दूसरे से बात भी कर सकें. इस महल के कायदे को इग्नोर करते हुए मिली जैसी है वैसी बनकर यहां रहने की ठान लेती है. राजा शेखर के इलाज के दौरान मिली को युवराज विक्रम सिंह राठौर (फवाद खान) से प्यार हो जाता है, जिन्हें हंसना मुस्कुराना नहीं आता. राठौर परिवार के लोग मिली को बिल्कुल भी पसंद नहीं करते. इन्हें लगता है कि मिली गैर-जिम्मेदार लड़की है. युवराज को भी मिली से प्यार है लेकिन उसे लगता है कि दोनों के बीच कुछ भी कॉमन नहीं है तो साथ में जिंदगी कैसे गुजारेंगे. फिर मिली किस तरह राठौर परिवार की सोच बदल देती है और दोनों की फैमिली इनकी शादी के लिए कैसे तैयार होती है यही पूरी कहानी है.

एक बात इस फिल्म में गौर फरमाने लायक है कि इस फिल्म में इस बात पर रिस्क नहीं लिया गया है कि आप सोनम और फवाद के एक्सप्रेशन देखकर अंदाजा लगाएं कि वे क्या सोच रहे हैं. जो बाते वे सोच रहे हैं वो भी आपको सुनने को मिल जाती है.

फिल्म में किरण खेर और रत्ना शाह पाठक, प्रसोनजीत चैटर्जी के शानदार अभिनय की वजह से आप इस पूरी फिल्म में बोर नहीं होंगे और एन्जॉय कर पाएंगे. फवाद खान अपना बॉलीवुड डेब्यू कर रहे हैं और फिल्म देखने के बाद उनके लिए लोगों का क्रेज और भी बढ़ने वाला है. फवाद खान अपने अभिनय की बदौलत सोनम कपूर पर भारी पड़े हैं.

फिल्म में सोनम कपूर सिर्फ अपने कॉस्ट्यूम से इंप्रेस करने में कामयाब होती हैं. सोनम कपूर को तो स्टाइल दीवा के नाम से ही जाना जाता है लेकिन कॉस्ट्यूम डिजायनर्स उमा बीजू, करूणा और राघवेंद्र राठौर ने इस फिल्म में उनके कॉस्ट्यूम पर बहुत ही खूबसूरत काम किया है. इसमें आपको कलरफुल कई तरह के स्टाइलिश कपड़ो में सोनम नजर आएंगी.

फिल्म के गाने 'इंजन की सिटी' और 'अभी तो पार्टी बाकी' है पहले ही लोगों को जुबान पर चढ़ चुके हैं. सोनम गाने में खूबसूरत और ग्लैमरस लगी हैं.

अगर आप वीकेंड पर अपने पूरे परिवार के साथ फिल्म देखना चाहते हैं तो यह अच्छा विकल्प है.


Tuesday, September 16, 2014

Well Done Deepika, किसी को तो आवाज उठाना ही था...

अभिनेत्री दीपिका पादुकोण ने अपनी एक तस्वीर को गलत एंगल से छापने को लेकर एक अंग्रेजी के प्रतिष्ठित अखबार पर अपना गुस्सा जाहिर किया है. गुस्से का कारण यह है कि अंग्रेजी अखबार ने अपनी वेबसाइट पर दीपिका पादुकोण की एक साल पुरानी वीडियो पोस्ट करके और लिखा- 'OMG! दीपिका का क्लीवजे शो! जवाब में दीपिका ने लिखा- मैं औरत हूं, मेरा ब्रेस्ट और क्लीवेज है आपको कोई प्रॉब्लम?
पिछले दो दिनों से सोशल मीडिया पर यह हॉट टॉपिक बना हुआ है. कुछ लोग दीपिका के इस कदम का सराह रहे हैं तो कुछ को इसमें पब्लिसिटी स्टंट नजर आ रही है. दीपिका के इस ट्वीट के बाद कई तरह के रिएक्शन देखने को मिल रहे हैं. कोई सपोर्ट कर रहा है तो कोई आलोचना. कई तरह के सवाल खड़े किए जा रहे हैं?

ऐसी खबर छापने वाला यह कोई इकलौता अखबार नहीं है. यह दुर्भाग्य ही है कि ऐसी खबरें आपको आए दिन देखने और पढ़ने को मिल ही जाती हैं. लेकिन कोई भी स्टार इसका विरोध करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता. क्योंकि कोई भी स्टार मीडिया के साथ पंगा नहीं लेना चाहता. मीडिया साइडलाइन कर दे तो पॉपुलिरिटी कैसे मिलेगी, फिल्मों का प्रमोशन कैसे होगा? प्रमोशन नहीं हुआ तो फिल्म हिट कैसे होगी? बात इतनी सी है कि मीडिया का विरोध करके कोई अपनी लोकप्रियता नहीं खोना चाहता. इन सब की परवाह ना करते हुए अगर कोई विरोध का स्वर ऊंचा करें तो हमें उसे गंभीरता से लेना चाहिए.


एक लीडिंग डेली द्वारा ऐसी भाषा का इस्तेमाल शर्मनाक है. लेकिन हद तो तब हो गई जब गलती मानने के बजाय इस संस्था ने एक ट्विट करके सफाई दी, "दीपिका, हम तो आपकी तारीफ कर रहे हैं. आप बेहद खूबसूरत हैं और हम चाहते हैं कि हर किसी को इस बात का पता चले." भला कोई प्रशंसा भी इस तरह करता है जिससे किसी के आत्मसम्मान को चोट पहुंचे. इसे वाजिब ठहराना तो और भी शर्मनाक है.


जो लोग भी इसे पब्लिसिटी स्टंट बता रहे हैं शायद उन्हें भी यह बात पता है हो कि एक सेलिब्रिटी और मीडिया का चोली-दामन का साथ होता है. एक के बिना दूसरा अधूरा है. दीपिका के इस रिएक्शन के बाद उस अखबार की जितनी किरकिरी हुई है ऐसा शायद ही किसी के साथ हुआ हो. दीपिका या कोई भी फिल्मी हस्ती स्टंट के लिए एक बड़े अखबार के साथ ऐसा रिस्क कभी नहीं लेगा. पब्लिसिटी स्टंट करने के और भी कई रास्ते हैं लेकिन जिस अभिनेत्री ने यह विरोध जताया है कि वह कोई मामूली एक्ट्रेस नहीं बल्कि एक प्रतिष्ठित खिलाडी की बेटी और बॉलीवुड सुपरस्टार है. दीपिका को पब्लिसिटी के लिए कुछ भी करने की जरूरत नहीं है.


किसी ना किसी को आवाज तो उठानी ही थी तो दीपिका क्यों नहीं? दीपिका का उन्हें उलटे मुंह यह जवाब बिल्कुल सही था कि वैसे तो आप महिलाओं के सशक्तिकरण की बात करते हैं और दूसरी तरफ इस तरह ऑब्जेक्ट बनाकर गलत तरीके से लोगों के बीच पेश करते हैं.


दीपिका के आवाज उठाते ही पूरा बॉलीवुड उनके साथ हो गया. होता भी क्यों ना, ऐसा सिर्फ दीपिका के साथ तो नहीं हो रहा. आजकल मीडिया की भाषा और कंटेंट का स्तर गिरता जा रहा है. अक्सर ही हमें उप्स मोमेंट और इसी तरह की कई और सामग्री दिखने को मिलती ही रहती है. बिक्री बढ़ाने के लिए ऐसी खबरें कई छोटे-मोटे मैगजीन और न्यूज़पेपर छापते रहते हैं. लेकिन जब बात देश के एक लीडिंग न्यूज़पेपर की हो तो हम इसे कतई स्वीकार नहीं कर सकते हैं. वैसे तो आप खुद को लोकतंत्र का चौथा हिस्सा बताते हुए सारी जिम्मेदारी अपने कंधो उठा लेते हैं लेकिन जब आप ऐसी खबर छाप रहे होते हैं तो आप इतनी बड़ी जिम्मेदारी कैसे भूल सकते हैं.


एक हकीकत यह भी है कि जब बात महिलाओं के सम्मान की होती है तो मीडिया बात करने को लेकर सबसे आगे होती है. खासकर यहां काम करने वाले लोग भी जब टीवी पर बैठकर बहस करते हैं तो लगता है कि महिलाओं की इज्जत उनसे ज्यादा कोई नहीं करता. लेकिन हकीकत तो कुछ और ही है. ये लोग तो अपने ही साथ काम करने वाली महिला सहकर्मियों की इज्जत करना नहीं जानते. हमेशा इस फिराक में रहते हैं कि कब मौक मिले और यह जता दें कि महिलाएं उनकी बराबरी नहीं कर सकती. खैर!


मीडिया की इस किरकिरी के बाद इस घटना को समझने और उस पर अमल करने की जरूरत है ना कि सिर्फ सहमति और असहमति दिखाकर निकल जाने की. जिस इंटरनेट के माध्यम से मीडिया अपनी खबरें ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने की कोशिश करता है आज वही ऐसा प्लेटफार्म बन गया है जहां आपको बहुत ही समझदारी से काम लेना होगा. नहीं तो, जो विश्वसनीयता बनाने में सालों लग गए उसे खराब करने के लिए कुछ ही पल काफी हैं. इसका उदाहरण आपके सामने है. मीडिया का काम सेलिब्रिटी के बारे में खबरें दिखाना जरूर है लेकिन उसके आत्म सम्मान को ठेस पहुंचाकर अश्लील सामग्री पेश करना नहीं. दीपिका ने यह कदम उठाकर सराहनीय काम किया है. एक एक्टर होने से पहले आप एक इंसान हैं. खुद के लिए आवाज उठाना आपका हक है और ये आपसे कोई नहीं छीन सकता.

Friday, September 12, 2014

मूवी रिव्यू: अगर बॉलीवुड की मसाला फिल्मों से बोर हो गए हैं तो जरूर देखें 'फाइंडिंग फैनी'

रेटिंग:   ***1/2   (साढ़े तीन स्टार)

अगर आप बॉलीवुड की मसाला फिल्मों से कुछ अलग हटकर देखना चाहते हैं तो यह फिल्म आपके लिए है. निर्देशक होमी अदजानिया ने इस फिल्म को बनाकर यह प्रूफ कर दिया है कि वह एक बेहतरीन निर्देशक हैं. यह फिल्म शुरूआत से लेकर खत्म होने तक अपने लक्ष्य से नहीं भटकती है. अदजानिया की पिछली फिल्म ‘कॉकटेल’ में उन्होंने दर्शकों को जो सिरदर्द दिया था उससे राहत देते हुए लोगों को एक शानदार फिल्म दी है.

हां, इतना जरूर है की फिल्म का फर्स्ट हाफ स्लो है लेकिन इंटरवल के बाद फिल्म जब रफ्तार पकड़ती है कि आप कुछ पल के लिए अपनी दुनिया से बाहर निकल फिल्म में डूब जाएँगे.

फिल्म में नसीरूद्दीन शाह, डिंपल कपाड़िया और पंकज कपूर की तिकड़ी ने कमाल कर दिया है. दीपिका पादुकोण और अर्जुन कपूर ने भी अपने हिस्से का अभिनय अच्छा किया है. हालांकि इस फिल्म में दीपिका को करने के लिए अलग कुछ भी नहीं था. इससे पहले भी वह कॉकटेल में ऐसा ही अभिनय कर चुकी हैं.

कहानी:
'फाइंडिंग फैनी' की कहानी गोवा के गांव 'पोकोलिम' शुरू होती है. यहां पर लोग बेवजह जी रहे होते हैं. उनकी जिंदगी जीने का उनके पास कोई मकसद नहीं है. फिल्म में पांच ऐसे ही लोगों की कहानी दिखाई गई है जिन्हें एक रोड ट्रीप की वजह से जिंदगी जीने का मकसद मिल जाता है.

दीपिका पादुकोण इस फिल्म में एक यंग विधवा एंजी का रोल कर ही हैं जिसका पति शादी के दिन ही केक खाकर मर जाता है. उसके बाद एंजी अपनी मदर इन लॉ रोजी (डिंपल कपाड़िया) के साथ रह रही होती हैं. एंजी को दूसरो की हेल्प करना पसंद है. गांव के ही एक दिन एक बूढ़े पोस्टमैन फर्डी (नसीरुद्दीन शाह) को एक चिट्ठी मिलती है. यह चिट्ठी 46 साल पहले उसने स्टेफैनी फर्नांडीस को लिखा था, जिससे वह प्यार करता था. चिट्ठी मिलते ही फर्डी को पता चलता है कि वह इतने साल से इस अफसोस के साथ जी रहा था कि स्टेफैनी ने उसे रिजेक्ट कर दिया था. अब वह अपने प्यार को पाना चाहता है. एंजी ठान लेती हैं कि फर्डी को स्टेफैनी से वह मिलवाएंगी. इसके लिए वह डॉन पित्रैदो (पंकज कपूर) से उसकी गाड़ी मांगती हैं. पित्रैदो एक फ्रेस्टेटिंग आर्टिस्ट है जो पूरी फिल्म में रोजी का एक पेंटिंग की कोशिश करता रहता है. एंजी पेड्रो से गाड़ी लेती हैं फिर इरिटेटिंग मैकेनिक सेवियो (अर्जुन कपूर) ड्राइवर बनकर उनके साथ जाता है. सैवियो–एंजी से प्यार करता है इसलिए इस ट्रिप पर जाने के लिए तैयार हो जाता है.

फर्डी अपने प्यार को ढ़ुढने जाता है. फर्डी को फैनी तो नहीं मिलती लेकिन पूरे ट्रीप के बाद इन्हें एहसास होता है कि जो हमारे आस पास है हम उन्हें छोड़कर दुनिया में जीने की वजह ढ़ूढ़ रहे हैं.

जब भी बात रोड ट्रिप पर बनी किसी फिल्म की बात आती है तो लगता है कि बोरिंग होगी या फिर स्लो. लेकिन इस फिल्म के साथ ऐसा नहीं है. जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है आप आगे जानने के लिए उत्सुक रहते हैं. यह रोड ट्रिप बहुत ही दिलचस्प है. यह कॉमेडी फिल्म नहीं है लेकिन पंकज कपूर के कुछ डॉयलॉग और सीन्स ऐसे हैं जिनपर आप खुद को हंसने से नहीं रोक  पाएंगे.

अभिनय:
आपको लिए फिल्म देखने की एक वजह यह भी हो सकती है कि फिल्म के पांचो किरदारों ने शानदार अभिनय किया है. लेकिन फिल्म की जान हैं फर्डी या नसीरूद्दीन शाह जिन्होंने अपने किरदार को जीवंत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. उन्होंने गजब के एक्सप्रेशन दिए हैं. चाहें वह इमोशनल सीन हो,  फैनी से दूर होने की वजह से दुखी हों या फिर फैनी के मिलने की बात पर उनके चेहरे की लालिमा.. अपने हर एक सीन में नसीरूद्दीन शाह आपको इंप्रेस कर जाएंगे.
इस फिल्म में रनवीर सिंह कैमियो रोल में हैं लेकिन अगर उनके अभिनय की बात ना करना बेमानी होगी. एक ही सीन में दिखे रनवीर सिंह ने अपनी छाप छोड़ दी है.

फिल्म में रोजी की एक कैट का भी जिक्र है. हालांकि ट्रिप के दौरान ही उसकी मौत हो जाती है. हम यह कह सकते हैं कि फिल्म में इसकी जरूरत नहीं थी, लेकिन यही कुछ ऐसी बातें हैं जो फिल्म को वास्तविक फील देती हैं.


तो अगर आप भी चालू-मसाला फिल्मों से बोर हो गए हैं और पिछले कुछ दिनों से एक अच्छी फिल्म देखने के इंतजार में हैं तो यह फिल्म जरूर देखें. इंटरटेनमेंट के लिए कुछ भी करेगा टाइप फिल्मों से हटकर इस फिल्म से आपको राहत जरूर मिलेगी.

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